इनसाइड स्टोरी: लोजपा में क्यों उठा तूफान, क्या पहले ही लिखी जा चुकी थी पटकथा?

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पटना। रविवार, 13 जून की रात से लोक जनशक्ति पार्टी में घमासान मचा हुआ है। सियासी हलकों में इसे लेकर तरह-तरह के विश्लेषण किए जा रहे हैं। दिवंगत रामविलास पासवान की खड़ी की हुई पार्टी बीच मंझधार में खड़ी नाव की तरह डोल रही है। सिर्फ लोजपा ही नहीं, वरन बिहार की सियासत में भी एक तरह का तूफान मच गया है।

13 जून की रात लोक जनशक्ति पार्टी के छह में से पांच सांसदों ने विद्रोह का बिगुल फूंक दिया है। सिर्फ रामविलास पासवान के पुत्र व फिलहाल पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे चिराग पासवान ही अब पार्टी के इकलौते सांसद बच गए हैं। वैसे लड़ाई इस बात की भी शुरू हो गई है कि लोजपा की बागडोर अब किसके हाथों में होगी।

रामविलास पासवान और चिराग पासवान (File photo)

वैसे, इसकी पटकथा तो पार्टी के संस्थापक रामविलास पासवान के गत वर्ष निधन के बाद से ही लिखी जाने लगी थी। उनके निधन के बाद ज्यादा समय नहीं गुजरा था, जब यह खबर सियासी हलके में जोरों से फैली थी कि उनके अनुज पशुपति कुमार पारस के नेतृत्व में चार सांसद अलग हो रहे हैं। इसे लेकर उनके हस्ताक्षर से एक पत्र भी जारी होने की खबर भी उस वक्त लीक हुई थी। यद्यपि पारस की ओर से तत्क्षण इस बात का खंडन कर दिया गया था कि ऐसा कुछ नहीं है। उस वक्त यह कहकर उन्होंने इन चर्चाओं को विराम दे दिया था कि इस समय वे अपने भाई रामविलास पासवान के शोक में हैं।

उस समय जो कुछ भी हुआ, भले ही उसे ज्यादा तूल-तबज्जो न देकर तात्कालिक रूप से मामले का पटाक्षेप कर दिया गया हो, पर कहीं-न-कहीं आग तो उसी वक्त लग गई थी।

रामचन्द्र पासवान, पशुपति कुमार पारस और प्रिंस (File photo)

एक बार इससे पहले भी ऐसी ही स्थिति बनी थी, जब रामविलास पासवान अभी मौजूद थे, हालांकि तब उनकी मौजूदगी के कारण यह बात दब गई थी और ‘आई-गई’ हो गई थी। उस वक्त पशुपति कुमार पारस लोक जनशक्ति पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हुआ करते थे। उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी से हटाते हुए दलित मोर्चा की जिम्मेदारी दी गई थी। उस वक्त भी इसे लेकर कई बातें सियासी हलके में चर्चाओं का सबब बनीं थीं।

पार्टी के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि फिर बीते लोकसभा चुनाव के समय भी वैशाली की सीट को लेकर अनबन हुई थी, पर तब भी रामविलास पासवान मौजूद थे। लिहाजा ये सब बातें अंदरखाने दबी रह गईं।

इधर, चिराग पासवान के पार्टी का नेतृत्व संभालने के बाद भी पार्टी में बगावत के सुर गाहे-बगाहे उठ रहे थे, पर यह कभी बहुत खुले रूप में सामने नहीं आया। मौजूदा परिप्रेक्ष्य में यह कहा जा सकता है कि स्क्रिप्ट लिखी जा चुकी थी, पर वक्त का इंतजार था।

पार्टी से जुड़े सूत्र बताते हैं कि पशुपति कुमार पारस हाल में एक दिन के लिए पटना आए थे और तुरंत वापस भी चले गए थे। इस राजनीतिक घटनाक्रम में जनता दल यूनाइटेड के वरिष्ठ नेता एवं सांसद ललन सिंह की भी भूमिका बताई जा रही है, जिनसे पारस की बातचीत हुई है। यह समूचा घटनाक्रम ऐसे वक्त में हुआ है, जब केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के शीघ्र विस्तार की संभावना जताई जा रही है। इस संभावना के बीच यह कयास भी लगाया जा रहा है कि इस गुट में भी किसी को प्रतिनिधित्व मिल जाए तो आश्चर्य की बात नहीं।
हालांकि अभी यह सब भविष्य के गर्भ में है, पर कभी बिहार में सत्ता की चाभी अपने पास रखने का दावा कर चुकी एलजेपी इस समय बिखरने के कगार पर पहुंच चुकी है।

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