पटना। पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के नेतृत्व वाली ‘हल’ पार्टी अभी नीतीश कुमार नीत बिहार की सरकार में शामिल है। खुद उनके पुत्र इस सरकार में मंत्री हैं, पर हालिया दौर में जीतनराम मांझी ने कई बार ऐसे बयान दिए हैं, जिन्हें सरकार की नीतियों के विरुद्ध समझा गया। बात चाहे शराबबंदी की हो, चाहे कोरोना लॉकडाउन लगाने की। मांझी का बयान सरकार के नीतिगत फैसलों के विरुद्ध ही आए। सरकार की नीतियों को लेकर कई दफा उन्होंने ट्विटर पर तंज भी किया। इस बीच मांझी और ‘वीआईपी’ पार्टी के मुखिया मुकेश साहनी की हुई मुलाकात ने इन बातों को और हवा दी तथा राजनीतिक गलियारों में इन चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया कि क्या अंदरखाने कोई अलग खिचड़ी पक रही है?
मांझी के इन बयानों को विपक्षी दल हाथोंहाथ ले रहे हैं और उन बयानों को कोट कर सरकार पर निशाना साध रहे हैं। इस बीच मांझी की तरफ से इन सवालों का अबतक कोई जबाब नहीं आया है कि सरकार की नीतियों और निर्णयों के विरुद्ध जाकर वे ऐसे बयान आखिर क्यों दे रहे हैं। वैसे राजनीतिक समीक्षक इन बयानों को उतनी अहमियत नहीं दे रहे। कुछ राजनीतिक समीक्षकों का यह भी कहना है कि यह मांझी की आजमाई हुई प्रेशर पॉलिटिक्स भी हो सकती है। मंत्रिमंडल में और जगह पाने या फिर बोर्ड और निगमों में हिस्सेदारी के लिए भी बयानों के तीर छोड़े जा रहे हों।
243 सीटों वाले बिहार विधानसभा की बात करें तो सत्ताधारी गठबंधन के पास फिलहाल 127 सीट है, यानि बहुमत से 5 सीट ज्यादा। यह काफी क्षीण बहुमत है और विपक्ष इसी में सेंध लगाने की कोशिश कर सकता है। विगत चुनावों में बीजेपी को 74, जेडीयू को 43, हम को 4 और वीआईपी को भी 4 सीट हासिल हुई थी। बाद में लोजपा के एकमात्र विधायक और एकमात्र निर्दलीय विधायक ने भी सरकार को समर्थन दे दिया था। वहीं विपक्षी गठबंधन की बात करें तो उनके पास फिलहाल 110 सीट हैं। इनमें राजद के पास 75, कांग्रेस 19, भाकपा(माले) 12, भाकपा 2, असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम 5 तथा अन्य को 8 सीटें हैं।
बिहार में जब फिर से एनडीए की सरकार बनी तो दोनों दलों से एक-एक मंत्री बनाए जाने का फैसला हुआ। इस परिप्रेक्ष्य में ‘हम’ पार्टी से जीतनराम मांझी के पुत्र और ‘वीआईपी’ पार्टी से विधानसभा चुनाव हार जाने के बावजूद स्वयं मुकेश साहनी मंत्री बने थे। अब मांझी के हालिया बयानों से कई तरह के राजनीतिक कयासों का बाजार गर्म हो रहा है।
वैसे मांझी की पार्टी पहले राजद के साथ ही थी। नवंबर 2020 के विधानसभा चुनावों के ऐन पहले वे और वीआईपी पार्टी एनडीए में शामिल हो गए थे। उस वक्त भी सीट बंटवारे को लेकर खूब खींचातानी चली थी। बाद में बीजेपी और जेडीयू के शीर्ष नेतृत्व द्वारा फैसला किया गया था कि चुनाव लड़ने के लिए दोनों दलों के हिस्से में जितनी सीटें आएंगी, उनमें से जेडीयू अपने कोटे की सीट में से जीतनराम मांझी की ‘हम’ पार्टी को और बीजेपी अपने हिस्से की सीट में से मुकेश साहनी की ‘वीआईपी’ पार्टी को सीट देगी और ऐसा ही हुआ भी।
243 सीटों वाले बिहार विधानसभा की बात करें तो सत्ताधारी गठबंधन के पास फिलहाल 127 सीट है, यानि बहुमत से 5 सीट ज्यादा। यह काफी क्षीण बहुमत है और विपक्ष इसी में सेंध लगाने की कोशिश कर सकता है। विगत चुनावों में बीजेपी को 74, जेडीयू को 43, हम को 4 और वीआईपी को भी 4 सीट हासिल हुई थी। बाद में लोजपा के एकमात्र विधायक और एकमात्र निर्दलीय विधायक ने भी सरकार को समर्थन दे दिया था। वहीं विपक्षी गठबंधन की बात करें तो उनके पास फिलहाल 110 सीट हैं। इनमें राजद के पास 75, कांग्रेस 19, भाकपा(माले) 12, भाकपा 2, असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम 5 तथा अन्य को 8 सीटें हैं।
बिहार में जब फिर से एनडीए की सरकार बनी तो दोनों दलों से एक-एक मंत्री बनाए जाने का फैसला हुआ। इस परिप्रेक्ष्य में ‘हम’ पार्टी से जीतनराम मांझी के पुत्र और ‘वीआईपी’ पार्टी से विधानसभा चुनाव हार जाने के बावजूद स्वयं मुकेश साहनी मंत्री बने थे। अब मांझी के हालिया बयानों से कई तरह के राजनीतिक कयासों का बाजार गर्म हो रहा है।