Navratri Maha Nisha Puja: कल शारदीय नवरात्र की अष्टमी(astmi) तिथि है।इस रात्रि महानिशा (Mahanisha) पूजा का विशेष महत्व है आइए जानते हैं लब्ध प्रतिष्ठित ज्योतिषाचार्य डाॅ0सुभाष पाण्डेय जी से महानिशा पूजा के महत्व,विधि और साधना के बारे में –
महानिशा काल में मां महागौरी का पूजन :
महानिशा काल में महागौरी (Mahagauri) के पूजन का विशेष महत्व है। इस तिथि को रात में ध्यान और पूजन करने से समस्त कामनाओं की पूर्ति होती है। महागौरी सौभाग्य की अधिष्ठात्री देवी हैं। महानिशा में ही भवानी की उत्पत्ति होती है और मां अपने भक्तों को सिद्धि प्रदान करती हैं।
इस रात में देवी का जागरण या हवन करके भी मां भगवती से मनचाहा आशीर्वाद मांग सकते हैं। साथ ही नकारात्मक शक्ति भी घर से दूर रहती हैं। परिवार के सदस्यों के बीच प्रेम भाव बना रहता है और आर्थिक समस्याएं दूर हो जाती हैं।
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ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है कि महानिशा की रात सबसे शक्तिशाली रात होती है। इस रात्रि में देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए पूजा का विशेष महत्व है। इस रात्रि को पूजा, भजन, ईश्वर का ध्यान और साधना करने के लिए माना गया है। महानिशा की रात तंत्र साधना (tantra saadhna) भी की जाती है।
तंत्र शास्त्र के अनुसार, तंत्र साधना के लिए इससे बेहतर कोई समय नहीं होता है। इस रात साधना करने से ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है और सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।अष्टमी जिस रात्रि को प्राप्त होती है उसी तिथि की रात्रि को महानिशा पूजा कहते हैं, जिसमेंं माता दुर्गा और माता काली की पूजा अर्चना की जाती है जिससे सभी तरह की मनोकामनाएं पूरी होती है साथ ही माता को प्रसन्न करने के लिए तंत्रिक पूजा भी की जाती है और बलि भी दी जाती है बलि पूर्णतया सात्विक होती है जो लोग रोग से परेशान हैं वो इस रात्रि त को माता की कृपामृत अवश्य प्राप्त करें।
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मुख्यतया इस रात्रि में माता दुर्गा और काली पूजा की जाती है माता को प्रसन्न करने के लिए तांत्रिक पूजाएं कुछ विशेष विधि से की जाती है माता काली के स्थान पर हवन पूजन होता है नारियल(coconut) की बलि दी जाती है। दुर्गासप्तशती के कुछ विशेष पृष्ठों का पाठ होता है। राजनीतिज्ञ लोग अपने विजय के लिए इस रात्रि बंगलामुखी अनुष्ठान भी करवा सकते हैं।
पीत वस्त्रों में कुश के आसन पर और हल्दी की माला से इसका वृहद अनुष्ठान तांत्रिक इस रात्रि करते हैं माता काली को प्रसन्न करने के लिए यह रात्रि बहुत ही उपयुक्त है कुछ तांत्रिक माता का भोग प्रसाद वहीं मंदिर में ही पकाते हैं इस रात्रि सिद्धिकुंजिकस्तोत्र का पाठ 18 बार करके सप्तश्लोकी दुर्गा और बंगलामुखी मंत्र पढ़कर माता को प्रसाद अर्पित कर भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण किया जाता है।
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उस रात्रि माता काली से कई सिद्धियां प्राप्त की जा सकती हैं इस रात्रि दुर्गासप्तशती के पाठ के साथ साथ श्री सूक्त का भी पाठ करके धन, पद और प्रतिष्ठा की प्राप्ति की जा सकती है ऋग्वैदिक श्री सूक्तं का पाठ करके हवन करने से धन का आगमन होता है इस रात्रि चतुषष्ठी योगिनी की पूजा का विशेष महत्व है।
इस प्रकार महानिशा में पूजा का लाभ लेकर अपने जीवन को धन्य करें माता काली को प्रसन्न करके कई तांत्रिक साधना से माता से मनोवांछित फल की प्राप्ति भी कर सकते हैं बंगलामुखी अनुष्ठान से विजय की प्राप्ति कर सकते हैं।