लोजपा का घमासान: पशुपति पारस बनाए गए नए राष्ट्रीय अध्यक्ष,कार्यकारिणी की बैठक में नहीं पहुंचे सांसद प्रिंस राज

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पटना। लोक जनशक्ति पार्टी में चल रहे आंतरिक कलह के बीच आज गुरुवार को पशुपति पारस को पार्टी का नया राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया गया है। वैसे इस बैठक की खास बात रही कि चिराग पासवान के चचेरे भाई व सांसद प्रिंस राज आज की इस बैठक में मौजूद नहीं रहे, जबकि वे पारस गुट के साथ ही चिराग से अलग हुए थे। लोक जनशक्ति पार्टी के पशुपति पारस गुट द्वारा इस चुनाव को लेकर राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई गई थी। बैठक का आयोजन लोजपा के पूर्व सांसद सूरजभान सिंह के आवास पर हुआ। हालांकि चिराग पासवान कह चुके हैं कि उस गुट को बैठक बुलाने का अधिकार ही नहीं है।

पशुपति पारस के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने के साथ ही लोक जनशक्ति पार्टी की कमान किसके हाथों में होगी, इस मामले में चाचा पशुपति पारस और भतीजे चिराग के बीच जारी विवाद में अब एक नया मोड आ गया है। पशुपति पारस पहले पार्टी के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष बने, अब उसके बाद उनके गुट के लोगों ने आज उन्हें नया राष्ट्रीय अध्यक्ष भी नियुक्त कर दिया है। 

बताया जा रहा है कि आज की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की इस बैठक में प्रिंस राज को छोड़ पार्टी के चार सांसदों समेत राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्यों ने शिरकत की। बैठक में लोजपा सांसद पशुपति पारस, महबूब अली कैसर, बीना देवी और चंदन सिंह मौजूद रहे।

उधर इस बैठक के लिए पशुपति पारस, सूरजभान सिंह सहित बागी खेमे के तमाम बड़े नेता कल बुधवार को ही पटना पहुंच चुके हैं। पटना पहुंचने पर हवाई अड्डे से लेकर पार्टी कार्यालय तक बड़ी संख्या में मौजूद समर्थकों ने ढोल-बाजे आदि के साथ इन नेताओं का जोरदार स्वागत किया था। एक तरह से इस पूरे एपिसोड को पारस गुट के शक्ति प्रदर्शन के तौर पर माना गया था।

हालांकि चिराग पासवान दावा कर रहे हैं कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष वे खुद हैं। बहैसियत राष्ट्रीय अध्यक्ष वे पारस गुट में शामिल पांचों सांसदों को पार्टी से निष्कासित किए जाने का पत्र भी जारी कर चुके हैं। चिराग पासवान ने पारस गुट की तरफ से बुलाई गई कार्यसमिति की बैठक को भी असंवैधानिक करार दिया है। रिपोर्ट के अनुसार चिराग पासवान ने कहा है कि लोक जनशक्ति पार्टी के संविधान के मद्देनजर कार्यसमिति की बैठक बुलाने का अधिकार केवल और केवल राष्ट्रीय अध्यक्ष को है, जो वे खुद हैं।

चिराग पासवान ने कहा है कि पार्टी संविधान के मुताबिक राष्ट्रीय अध्यक्ष दो ही परिस्थितियों में हट सकते हैं। पहला जब वह खुद इस्तीफा दे दें या फिर जब उनका निधन हो जाए। कार्यसमिति को यह अधिकार ही नहीं है कि वह राष्ट्रीय अध्यक्ष को अपदस्थ कर दे। ना ही राष्ट्रीय अध्यक्ष के अलावा किसी को कार्यसमिति बुलाने का अधिकार है। 

उधर पार्टी के इतिहास में पहली बार राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान दलित सेना के जिलाध्यक्षों को भी बुलाया गया है। पारस खेमे का दावा है कि रामविलास पासवान ने जब एलजेपी का गठन किया था तो उस समय 25 संस्थापक सदस्य थे। वे सभी राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य शुरू से रहे हैं। इनमें से 6 लोगों का निधन हो चुका है और बाकी के 19 लोग बैठक में मौजूद रहेंगे।

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