Constitution Day: संविधान में अबतक हो चुके 104 संशोधन,मूल प्रति सुरक्षित रखने की भी बड़ी कवायद

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(संविधान दिवस पर विशेष)

Constituation Day: संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 के दिन भारत के सं‍विधान (Indian Constitution) को अंगीकृत किया था जिसे हर साल संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारतीय संसद ने संविधान में अबतक 104 बार संशोधन किया है।

26 नवंबर के दिन को भारत के संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। अब तक 126 संविधान संशोधन विधेयक संसद में लाये गये हैं, जिनमें से 104 संविधान संशोधन विधेयक पारित हो चुके हैं। भारत का संविधान विश्व के किसी भी गणतांत्रिक देश का सबसे लंबा लिखित संविधान है। संविधान को पूर्ण रूप से तैयार करने में 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन का समय लगा था।

हाथ से बने कागज पर लिखा गया, हर पन्ने पर सोने की पत्तियों वाले फ्रेम

दुनिया में भारत का ही संविधान है, जो हाथ से बने कागज पर हाथ से लिखा हुआ है। हर पन्ने पर सोने की पत्तियों वाली फ्रेम बनी है। साथ ही हर अध्याय के आरंभिक पृष्ठ पर एक कलाकृति भी बनाई गई है। संविधान की मूल प्रति को पहले फलालेन के कपड़े में लपेटकर नेफ्थलीन बॉल्स के साथ रखा गया था।

संविधान की प्रस्तावना

मूल प्रति को सुरक्षित रखने की बड़ी कवायदें

1994 में संसद भवन के पुस्तकालय में इसे वैज्ञानिक विधि से तैयार चेम्बर में सुरक्षित कर दिया गया। इससे पहले यह देखा गया कि दुनिया में अन्य संविधानों को किस तरह सुरक्षित रखा गया है। पता चला कि अमेरिकी संविधान सबसे सुरक्षित वातावरण में है।

वॉशिंगटन स्थित लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस में हीलियम गैस के चेम्बर में इस एक पेज के संविधान को रखा गया है। इसके बाद अमेरिका के गेट्टी इंस्टीट्यूट, भारत की नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी व भारतीय संसद के बीच करार के बाद गैस चेम्बर बनाने की पहल हुई।

भारतीय संविधान आकार में बड़ा और भारी है, इसलिए चेम्बर बड़ा हो गया। इसमें हीलियम गैस रोकने की तमाम कोशिशें नाकाम हो गईं तो नाइट्रोजन गैस का चेम्बर बनाया गया। कागज की सुरक्षा के लिए ऐसी गैस की आवश्यकता थी, जो इनर्ट यानी नॉन-रिएक्टिव हो। नाइट्रोजन भी ऐसी ही है। भारतीय संविधान काली स्याही से लिखा है, लिहाजा ये आसानी से उड़ (ऑक्सीडाइज) सकती थी।

संशोधन के 126 प्रस्ताव, 104 संशोधन

इसमें अब तक 104 संशोधन हो चुके हैं। इसके लिए 126 संविधान संशाेधन विधेयक पारित हुए हैं। ऐसे में कई बार यह भ्रांति हो जाती है कि संविधान में 126 संशोधन हो चुके हैं। हमारे संविधान को विश्व के सबसे अधिक संशोधित संविधानों में से माना जाता है। लेकिन इनमें से अधिकांश संशोधन छोटे-मोटे स्पष्टीकरण वाले ही हैं। जैसे- राज्य का नाम बदलना, भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करना या आरक्षण की समय अवधि बढ़ाना। 

1976 : 42वां संशोधन

यह संशोधन ऐसा था, जिसके जरिए सरकार ने आपातकाल के दौरान बहुत सारे अधिकार अपने हाथ में ले लिए और न्यायपालिका के अधिकारों में भी कटौती कर दी। तब कई संशोधन तो ऐसे किए गए, जो लोकतंत्र की भावना के विरुद्ध थे। फिर आपातकाल समाप्त होने के बाद 43वें, 44वें संशोधनों के द्वारा उन अधिकांश संशोधनों को समाप्त किया गया, जो 42वेें संशोधन के जरिए लाए गए थे।

इसके बावजूद 42वें संशोधन की कई ऐसी बातें थीं, जो जारी रहीं। जैसे संविधान में नागरिकों के मूल कर्तव्यों के संबंध में जो चार(क) भाग जोड़ा गया था, वो नहीं बदला और आज भी क़ायम है। इसे बहुत महत्वपूर्ण समझा जाता है, क्योंकि संविधान में मूल अधिकारों का विवेचन तो था, लेकिन मूल कर्तव्यों के बारे में कुछ नहीं कहा गया था।

मूल कर्तव्यों की बात 42वें संशोधन से ही संविधान में आई। इसके अलावा एक महत्वपूर्ण बदलाव राष्ट्रपति के बारे में था। पहले सारी कार्यकारी शक्तियां राष्ट्रपति में ही निहित थीं। 42वें संशोधन में कहा गया है कि राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह से ही काम करना होगा, जो आज भी है।

1978 : संपत्ति का अधिकार

पहला महत्वपूर्ण संशोधन था। ज़मींदारी उन्मूलन और संपत्ति के अधिकार को लेकर लंबे समय तक न्यायपालिका और विधायिका के बीच रस्साकशी चली थी। ज़मींदारी उन्मूलन के संबंध में जो क़ानून संसद ने बनाया था, उसे न्यायपालिका ने निरस्त कर दिया। इसके बाद संविधान में संशोधन किया गया।

फिर भी न्यायपालिका को स्वीकार्य नहीं हुआ तो कई संशोधन करने पड़े, जिनमें- पहला, चौथा, 17वां, 29वां, 34वां आदि संशोधन हैं। आखिर 1978 में 44वें संशोधन द्वारा संपत्ति के अधिकार को मूल अधिकारों के अध्याय से निकाल दिया गया।

2004 : केंद्र व राज्यों में मंत्रियों की संख्या पर अंकुश

इसके माध्यम से केंद्र और राज्यों में मंत्रियों की संख्या पर अंकुश लगाया गया। तय किया गया कि मंत्रियों की संख्या निम्न सदन के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी। इसके पहले कुछ राज्यों में ऐसा हो रहा था कि विधानसभा में कुल सदस्यों की संख्या तो 60 है और इसमें से 49 को मंत्री बना दिया गया। बाकी को भी मंत्री के समकक्ष दर्जा देकर पद दे दिया गया।  इसे रोकने के लिए संविधान आयोग की सिफ़ारिश पर यह संशोधन लाया गया।

2006 : पिछड़े वर्ग को शिक्षण संस्थानों में आरक्षण

इसके माध्यम से संविधान के अनुच्छेद 15 में बदलाव करके सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ों को शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की व्यवस्था की गई। पहले यह प्रावधान सिर्फ एससी-एसटी और  एंग्लो इंडियंस के लिए था। इस संशाेधन के जरिए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को यह सुविधा दी गई।