Godse : 72 साल पहले आज ही के दिन हुई थी गोडसे को फांसी, जानें गांधी की हत्या वाले दिन की पूरी कहानी

ताज़ा खबर राष्ट्रीय
SHARE



Nathuram Godse : आज 15 नवंबर है और आज का दिन इसलिए भी अहम है क्योंकि महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को 72 साल पहले आज के ही दिन फांसी हुई थी। महात्मा गांधी को विश्व इतिहास के महानतम नेताओं में शुमार किया जाता है। भारत माता को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराने के लिए महात्मा गांधी ने जीवन भर अहिंसा और सत्याग्रह का संकल्प निभाया, मगर उन्हें आजादी की हवा में सांस लेना ज्यादा दिन नसीब नहीं हुआ।

पंद्रह अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ और 30 जनवरी 1948 की शाम नाथू राम गोडसे ने अहिंसा के उस पुजारी के सीने में तीन गोलियां उतार दीं। आइए जानते हैं 30 जनवरी 2048, जिस दिन बापू की हत्या हुई, उस दिन का पूरा घटनाक्रम।

(30 जनवरी 2048 को महात्मा गांधी प्रार्थना सभा के लिए निकले थे)

इस अपराध पर नाथूराम को फांसी की सजा सुनाई गई और वह 15 नवंबर 1949 का दिन था, जब उसे फांसी दी गई। यह तथ्य अपने आप में दिलचस्प है कि स्वतंत्रता संग्राम में दौरान नाथूराम गोडसे महात्मा गांधी के आदर्शों का मुरीद था, लेकिन एक समय ऐसा आया कि वह उनका विरोधी बन बैठा और उन्हें देश के बंटवारे का दोषी मानने लगा।

नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की जिस बंदूक से गोली मारकर हत्या कर दी थी, वह इटली निर्मित स्वचालित पिस्तौल थी। यह बेरेटा सीएएल 9 पिस्तौल थी, जिसकी संख्या 719791 थी। आजादी के बाद बिगड़े सामाजिक सौहार्द के लिए बापू मरते दमतक जूझते रहे। वह किसी तरह चाहते थे कि लोगों के दिल से दिल मिल जाएं और इसके लिए उन्होंने खाना-पीना तक छोड़ दिया था।

(महात्मा गांधी रोज की तरह जा रहे थे)

गोली चलाने से पहले किया था नमस्कार
गोडसे ने गांधी जी पर तीन गोलियां चलाने से पहले उन्हें नमस्कार किया था।अदालत में जब गोडसे से पूछा गया कि उसने महात्मा गांधी को क्यों मारा? तो उसने शांत स्वर में जवाब दिया ‘गांधी जी ने देश की जो सेवा की है, उसका मैं आदर करता हूँ। उनपर गोली चलाने से पूर्व मैं उनके सम्मान में इसीलिए नतमस्तक हुआ था किंतु जनता को धोखा देकर पूज्य मातृभूमि के विभाजन का अधिकार किसी बड़े से बड़े महात्मा को भी नहीं है। गांधी चाहते तो विभाजन रोक सकते थे लेकिन उन्होंने इस ओर देखकर भी चुप्पी साधे रखी’

क्या हुआ था उस दिन
तीस जनवरी 1948 की शुरुआत आम दिन की तरह हुई थी। महात्मा गांधी तड़के साढ़े तीन बजे उठे, प्रार्थना की। दो घंटे में अपने काम निपटाकर वह सुबह छह बजे फिर सोने चले गए। दोबारा सोकर आठ बजे उठे। डरबन के उनके पुराने साथी रुस्तम सोराबजी सपरिवार गांधी से मिलने आए। चार बजे वल्लभभाई पटेल अपनी पुत्री मनीबेन के साथ गांधी से मिलने पहुंचे और प्रार्थना के समय यानी शाम पांच बजे के बाद तक उनसे मंत्रणा करते रहे। पटेल के साथ बातचीत के दौरान बापू चरखा चलाते रहे। उनकी सहयोगी आभा को मालूम था कि गांधी को प्रार्थना सभा में देरी से पहुंचना बिल्कुल पसंद नहीं था। वह परेशान हुईं, पटेल को टोकने की उनकी हिम्मत नहीं हुई। आखिर किसी तरह हस्तक्षेप किया और गांधी जब प्रार्थना सभा में जाने के लिए उठे तो पांच बज कर 10 मिनट होने को आए थे।

इससे बाद बात करते-करते महात्मा गांधी प्रार्थना स्थल तक पहुंच चुके थे। गांधी ने लोगों के अभिवादन के जवाब में हाथ जोड़े। बाईं तरफ से नाथूराम गोडसे उनकी तरफ झुका और लगा कि वह गांधी के पैर छूने की कोशिश कर रहा है। लेकिन तभी गोडसे ने पिस्टल निकाल ली और एक के बाद एक तीन गोलियां गांधीजी के सीने और पेट में उतार दीं। बापू जी के मुख जो अंतिम स्वर निकले वो थे, हे राम…..रा…..म. हे और उनका जीवनहीन शरीर नीचे की तरफ गिर गया।

courtesy-agency