Bhaiya Duj-Govardhan Puja : भैया दूज पर बहनें क्यों देतीं हैं भाइयों को श्राप, जानें चित्रगुप्त पूजा क्यों होता है खास

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डॉ सुभाष पाण्डेय-

Bhaiya Duj-Govardhan Puja : भैया दूज ,गोवर्द्धन पूजा ,यमद्वितीया और चित्रगुप्त पूजा हमारी सनातन संस्कृति में प्रकृति पूजन का प्रतीक है। यह पर्व दर्शाता है कि प्रकृति ही मूल देवता है। इस सन्दर्भ में भारतवर्ष के विभिन्न क्षेत्रों में भले ही अलग-अलग परम्परा और रीति-रिवाज हो परन्तु इसका मूल स्वरूप हर जगह प्रकृति पूजा के रुप में ही परिदर्शित होता है।
यह पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया को मनाया जाता है। इस दिन प्रातःकाल चंद्र-दर्शन की परंपरा है और जिसके लिए भी संभव होता है वो यमुना नदी के जल में स्नान करते हैं।इस मंत्र का जप देवी यमुना की पूजा करते समय करना चाहिये ताकि उनका आशीष मिल जाये –

•यमस्वसर्नमस्तेऽसु यमुने लोकपूजिते।

•वरदा भव मे नित्यं सूर्यपुत्रि नमोऽस्तु ते॥

•ऊँ नमो भगवत्यै कलिन्दनन्दिन्यै सूर्यकन्यकायै यमभगिन्यै श्रीकृष्णप्रियायै यूथीभूतायै स्वाहा।’

।। ऊँ हीं श्रीं, क्लीं कालिन्द्यै देव्यै नम:’।।

स्नानादि से निवृत्त होकर दोपहर में बहन के घर जाकर वस्त्र और द्रव्यादि द्वारा बहन का सम्मान किया जाता है और वहीं भोजन किया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से कल्याण या समृद्धि प्राप्त होती है। बदलते हुए समय को देखें तो यह व्यस्त जीवन में दो परिवारों को मिलने और साथ समय बिताने का सर्वोत्तम उपाय है।

ऐसा कहा गया है कि यदि अपनी सगी बहन न हो तो पिता के भाई की कन्या, मामा की पुत्री, मौसी अथवा बुआ की बेटी – ये भी बहन के समान हैं, इनके हाथ का बना भोजन करें। जो पुरुष यमद्वितीया को बहन के हाथ का भोजन करता है, उसे धन, आयुष्य, धर्म, अर्थ और अपरिमित सुख की प्राप्ति होती है।

कौन हैं चित्रगुप्त और क्यों होती है उनकी पूजा

कायस्थ समाज में इस दिन चित्रगुप्त और कलम-पूजा का भी विधान है। श्री चित्रगुप्तजी कायस्थों के आराध्य देव हैं। पौराणिक आख्यान के अनुसार श्री चित्रगुप्तजी की उत्पत्ति ब्रह्माजी की काया से हुई है। सृष्टि रचना के पश्चात जब पितामह ब्रह्मा ने धर्मराज को धर्मप्रधान मानकर जीवों के शुभाशुभ कर्मों का न्याय कर योग्य फल देने का अधिकार दिया, तब धर्मराज ने इस अत्यंत कठिन कार्य के लिए ब्रह्माजी से प्रार्थना कर ऐसे सहायक की माँग की जो न्यायी, बुद्धिमान, चरित्रवान व लेखाकर्म में विज्ञ हो।

ब्रह्माजी ने धर्मराज की प्रार्थना को उचित समझकर उनके मनोरथ को पूर्ण करने के लिए ध्यान लगाया। फलतः लंबी तपस्या के बाद ब्रह्माजी की काया से हाथ में कलम-दवात लिए विलक्षण तेजस्वी पुरुष की उत्पत्ति हुई। इस तेजस्वी पुरुष ने ब्रह्माजी से अपना नामकरण करने का निवेदन किया।

तब ब्रह्माजी ने कहा कि ‘तुम विचित्र रूप में मेरे चित्त में गुप्त रहे अतः तुम्हारा नाम चित्रगुप्त है। चूँकि तुम मेरी काया से प्रकट हुए हो, मेरी काया में तुम्हारी स्थिति है इसलिए तुम कायस्थ हो।श्री चित्रगुप्तजी गुप्त रहकर सृष्टि के कर्मों पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखते हैं तथा धर्मराज को न्याय करने में सहयोग देते हैं।

क्यों मनाया जाता है भैया दूज

उत्तर और मध्य भारत में यह पर्व भातृ द्वितीया ‘भैयादूज’ के नाम से जाना जाता है। इस पर्व पर बहनें प्रायः गोबर गोवर्धन पर्वत बनाती हैं, उसमें चावल और हल्दी के चित्र बनाती हैं तथा सुपारी, फल, पान, रोली, धूप, मिष्ठान्न आदि रखती हैं, दीप जलाती हैं। गोवर्धन पूजा करने के पीछे धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण इंद्र का अभिमान चूर करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर गोकुल वासियों की इंद्र से रक्षा की थी।

माना जाता है कि इसके बाद भगवान कृष्ण ने स्वंय कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन 56 भोग बनाकर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का आदेश दिया दिया था। तभी से गोवर्धन पूजा की प्रथा आज भी कायम है और हर साल गोवर्धन पूजा और अन्नकूट का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन यम द्वितीया की कथा भी सुनी जाती है।

बहनें क्यों देती हैं भाइयों को श्राप

सूर्य भगवान की स्त्री का नाम संज्ञा देवी था। इनकी दो संतानें, पुत्र यमराज तथा कन्या यमुना थी। संज्ञा देवी पति सूर्य की उद्दीप्त किरणों को न सह सकने के कारण उत्तरी ध्रुव प्रदेश में छाया बन कर रहने लगीं। उसी छाया से ताप्ती नदी तथा शनीचर का जन्म हुआ। इधर छाया का यम तथा यमुना से विमाता सा व्यवहार होने लगा। इससे खिन्न होकर यम ने अपनी एक नई नगरी यमपुरी बसाई, यमपुरी में पापियों को दण्ड देने का कार्य सम्पादित करते भाई को देखकर यमुनाजी गो लोक चली आईं जो कि कृष्णावतार के समय भी थी।
यमुना अपने भाई यमराज से बडा स्नेह करती थी। वह उससे बराबर निवेदन करती कि वह उसके घर आकर भोजन करें। लेकिन यमराज अपने काम में व्यस्त रहने के कारण यमुना की बात को टाल जाते थ। बहुत समय व्यतीत हो जाने पर एक दिन सहसा यम को अपनी बहन की याद आई। उन्होंने दूतों को भेजकर यमुना की खोज करवाई, मगर वह मिल न सकीं।

फिर यमराज स्वयं ही गोलोक गए जहाँ विश्राम घाट पर यमुनाजी से भेंट हुई। भाई को देखते ही यमुनाजी ने हर्ष विभोर होकर उनका स्वागत सत्कार किया तथा उन्हें भोजन करवाया। इससे प्रसन्न हो यम ने वर माँगने को कहा। इसपर यमुना ने कहा – हे भइया मैं आपसे यह वरदान माँगना चाहती हूँ कि मेरे जल में स्नान करने वाले नर-नारी यमपुरी न जाएँ।

प्रश्न बड़ा कठिन था, यम के ऐसा वर देने से यमपुरी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता। भाई को असमंजस में देख कर यमुना बोलीं – आप चिंता न करें मुझे यह वरदान दें कि जो लोग आज के दिन बहन के यहाँ भोजन करके मेरे जल में स्नान करें वे तुम्हारे लोक को न जाएँ। इसे यमराज ने स्वीकार कर लिया।

उन्होंने बहन यमुनाजी को आश्वासन दिया – ‘इस तिथि को जो सज्जन अपनी बहन के घर भोजन नहीं करेंगे उन्हें मैं बाँधकर यमपुरी ले जाऊँगा और तुम्हारे जल में स्नान करने वालों को स्वर्ग होगा।’ तभी से यह त्यौहार मनाया जाता है।इस दिन बहनें भाई को श्राप देती हैं क्योंकि उन्हें यह पूर्ण विश्वास रहता है कि आज मेरे भाई को यमराज स्वयं भी नहीं ले जा सकते क्योंकि यह वरदान उन्होंने स्वयं ही दिया है।

परन्तु मानव सुलभ व्यवहार के कारण पुनः अपना श्राप वापस भी ले लेती हैं।और अपनी जिह्वा पर रेंगनी का कांटा ( एक तरह के काॅटेदार पत्ते) चूभोती हैं कि इसी जीभ ने प्यारे भाई को श्राप दिया था।और अपना श्राप वापस ले लेती हैं और ढेर सारा आशीर्वाद देती हैं। यह पर्व भाई बहन के प्रेम और समर्पण का अद्वितीय पर्व है।

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