Durga Puja 2021: नवरात्र में किस दिन माता के किस रूप की होती है पूजा, क्या है हर दिन की विधि,मंत्र,आरती और प्रसाद

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Durga puja 2021: शारदीय नवरात्र (Sharadiya Navratra) का प्रारंभ आश्विन मास (Ashwin Month) के शुक्ल पक्ष की सूर्योदय व्यापिनी प्रतिपदा सात अक्टूबर गुरुवार से हो रहा है। आइए इस सन्दर्भ में लब्धप्रतिष्ठ ज्योतिर्विद् डाॅ0सुभाष पाण्डेय ( dr. Subhash pandey) से जानते हैं कलश स्थापित करने का शुभ मुहूर्त (Shubh Muhurat ) एवम् अन्य शास्त्रोक्त बातें जिनसे हम पूर्ण विधि-विधान (Kalash sthapan vidhi) से इस नवरात्र मातारानी की अराधना कर सकते हैं।डाॅ0सुभाष पाण्डेय कहते हैं कि सात अक्टूबर को कलश स्थापना के साथ ही नवरात्र व्रत (Navratra vrat) भी प्रारंभ हो जाएगा।प्रतिपदा सात अक्टूबर को प्रातः से शेष रात्रि 3 बजकर 28 मिनट तक है।परन्तु चित्रा नक्षत्र के साथ वैधृति योग भी प्रातः 8 बजकर 14 मिनट से हो जाएगा।

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चित्रा नक्षत्र (Chitra Nakshatra) के साथ वैधृति योग कलशस्थापन हेतु शुभ नहीं माना जाता अतः ब्रह्म वेला से प्रातः 8:14 तक तथा पुनः अभिजिन्मुहूर्त में दिन में 11:37 से 12:23 तक का समय कलश स्थापना हेतु शुभ है।इस वर्ष षष्ठी तिथि का लोप होने से नवरात्र आठ दिनों का ही होगा।11अक्टूबर सोमवार को प्रातः 6:29 तक पंचमी है तथा इसी दिन प्रातः6:29 से प्रारंभ होकर षष्ठी तिथि रात्रि 4बजकर 5 मिनट पर समाप्त हो जाए रही है।अतः सूर्योदय व्यापिनी षष्ठी का लोप हो गया है।पुनः सप्तमी 12 अक्टूबर मंगलवार को अष्टमी 13 अक्टूबर बुध वार को तथा नवमी 14 अक्टूबर गुरुवार को पूर्ण है।

विजयादशमी(vijayadashami) 15 अक्टूबर शुक्रवार को मनाया जाएगा।हमारे शास्त्रों में दिन अनुसार देवी के गमनागमन का विचार तथा वर्ष पर्यन्त इसके शुभाशुभ फल का विचार भी दिया गया है।आइये जानते है आद्य शक्ति जगत जननी मा जगदम्बा के गमनागमन के वाहन विचार एवम प्रभाव के बारे में ।
शशिसूर्ये गजारूढ़ा शनिभौमे तुरंगमे।
गुरौ शुक्रे चदोलायां बुधे नौका प्रकी‌र्त्तिता ।।
सोमवार या रविवार को घट स्थापना होने पर मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती हैं।
शनिवार या मंगलवार को नवरात्रि की शुरुआत होने पर देवी का वाहन घोड़ा माना जाता है।
गुरुवार या शुक्रवार को नवरात्र शुरू होने पर देवी डोली में बैठकर आती हैं।
बुधवार से नवरात्र शुरू होने पर मां दुर्गा नाव पर सवार होकर आती हैं।
देवी के वाहन का शुभ-अशुभ असर
माता दुर्गा जिस वाहन से पृथ्वी पर आती हैं, उसके अनुसार सालभर होने वाली घटनाओं का भी आंकलन किया जाता है।

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श्लोक
गजे च जलदा देवी क्षत्र भंगस्तुरंगमे।
नोकायां सर्वसिद्धि स्या डोलायां मरणंध्रुवम्।।
देवी जब हाथी(haathi) पर सवार होकर आती है तो पानी ज्यादा बरसता है। घोड़े(horse) पर आती हैं तो पड़ोसी देशों से युद्ध की आशंका बढ़ जाती है। देवी नौका(yatch) पर आती हैं तो सभी की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और डोली पर आती हैं तो महामारी का भय बना रहता हैं।

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कौन से वाहन पर सवार होकर जाती हैं देवी
माता दुर्गा आती भी वाहन से हैं और जाती भी वाहन से हैं। यानी जिस दिन नवरात्र का अंतिम दिन होता है, उसी के अनुसार देवी का वाहन भी तय होता है। देवी भागवत के अनुसार-
श्लोक
शशि सूर्य दिने यदि सा विजया महिषागमने रुज शोककरा।
शनि भौमदिने यदि सा विजया चरणायुध यानि करी विकला।।
बुधशुक्र दिने यदि सा विजया गजवाहन गा शुभ वृष्टिकरा।
सुरराजगुरौ यदि सा विजया नरवाहन गा शुभ सौख्य करा॥
रविवार या सोमवार को देवी भैंसे की सवारी से जाती हैं तो देश में रोग और शोक बढ़ता है। शनिवार या मंगलवार को देवी मुर्गे पर सवार होकर जाती हैं, जिससे दुख और कष्ट की वृद्धि होती है।
बुधवार या शुक्रवार को देवी हाथी पर जाती हैं। इससे बारिश ज्यादा होती है।
गुरुवार को मां दुर्गा मनुष्य की सवारी से जाती हैं। इससे सुख और शांति की वृद्धि होती है।
इस वर्ष गुरुवार को प्रतिपदा होने से माता के आगमन का वाहन डोली है जो अशुभ फल कारक है।इस वर्ष महामारी या प्राकृतिक आपदाओं से जन की क्षति होगी।
गुरुवार को नवमी होने से माता के गमन का वाहन नर है जो सुख की वृद्धि करने वाला है।
तिथि के अनुसार माता रानी के नैवेद्य भोग का वर्णन भी धर्म शास्त्रों में मिलता है। जैसे नवरात्र के हर दिन मां के अलग अलग नौ स्वरूपों की आराधना करते हैं, वैसे ही देवी को 9 अलग अलग तरह के नैवेद्य अर्पित करते हैं।
तिथि के नैवेद्य इस प्रकार हैं:

नवरात्रि का प्रथम दिन मां शैलपुत्री (shailputri) को समर्पित होता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन देवी मां को गाय (cow) का शुद्ध घी अर्पित करने से आरोग्यता का आशीर्वाद मिलता है अर्थात् सभी तरह के रोगों से मुक्ति मिलती है। मां को घी का भोग अत्यंत प्रिय होता है, इसको चढ़ाने से सभी परेशानियां दूर होकर शरीर निरोगी रहता है।
नवरात्रि का दूसरा दिन मां ब्रम्हचारिणी का है। दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी (brahamchaarini) को शक्कर का भोग लगाने से मां अत्यंत प्रसन्न होती हैं। इस भोग को देवी को अर्पित करने पर घर के लोगों की उम्र बढ़ती है। ऐसी मान्यता है कि बाद में परिवार के सदस्यों में बांटने से सभी की आयु में वृद्ध‍ि होती है।
मां के नवदुर्गा रूप में तीसरा स्वरूप चंद्रघंटा (chandra ghanta) है। तीसरे दिन मां के इस स्वरूप की आराधना की जाती है। मान्यतानुसार, इस दिन मां को दूध (milk) या दूध से बनी मिठाई खीर(kheer) का भोग लगाकर ब्राह्मणों को दान करना शुभ फलदायी होता है। मां को दूध से बनी मिठाई का भोग लगानो से दुखों से मुक्ति मिलने के साथ परम आनंद की प्राप्ति होती है।
नवरात्र का चौथा दिन मां कूष्मांडा (kushmaanda) का दिन है इस दिन कूष्मांडा देवी की पूजा विधिविधान के साथ करने के साथ उन्हें मालपुए का भोग लगाना शुभ माना जाता है। मां कूष्मांडा को नवरात्रि के चौथे दिन मालपुए का भोग लगाने से उनकी कृपा प्राप्त होती हैं। मालपुए का भोग मां को लगाने के बाद इस भोग को मंदिर के ब्राह्मणों को भी दान करना चाहिए। ऐसा करने से बुद्धि का विकास होने के साथ-साथ निर्णय लेने की क्षमता में वृद्धि होती है।
नवरात्रि का पांचवा दिन मां स्कंदमाता (skand maata) को समर्पित होता है। धार्मिक मान्यतानुसार, इस दिन की देवी स्कंदमाता को केले का नैवेद्य चढ़ाना बहुत उत्तम फलदायी होता है। केले(banana) का भोग अर्पित करने से उत्तम स्वास्थ्य और निरोगी काया की प्राप्ति होती है।

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नवरात्र के छठें दिन कात्यायिनी (kaatyaayni)देवी की पूजा होती है। षष्ठी के दिन देवी मां को शहद(honey) और मीठे पान का भोग लगाना बहुत अच्छा माना जाता है। इस दिन शहद का भोग लगाने से लोगों में आपकी लोकप्रियता में वृद्धि होती है।
नवरात्रि का सप्तम दिन देवी कालरात्रि (kaal raatri)मां को समर्पित है। इस दिन मां को गुड़ का भोग लगाया जाता है। सातवें दिन मां को गुड़ का भोग लगाने चढ़ाने और ब्राह्मण को गुड़ दान करने से परेशानियों से मुक्ति मिलती है एवं अचानक आने वाले विपदाओं से भी से रक्षा होती है।
नवरात्रि का आठवां दिन मां महागौरी(mahagauri) को समर्पित है। माता के इस स्वरूप को को नारियल(coconut) बहुत ही प्रिय होता है। नारियल का भोग लगाने और नारियल का दान करने से संतान संबंधी सभी परेशानियों से मुक्ति मिलती है और देवी मां की कृपा प्राप्त होती है।
नवरात्रि का अंति‍म दिन मां सिद्धदात्री (siddhidatri) को समर्पित है। नवमी तिथि‍ पर देवी मां को तिल का भोग लगाना शुभ माना जाता है। इस दिन तिल का भोग लगाकर ब्राह्मण को दान देने से मृत्यु भय से राहत मिलती है।

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