Navratri : नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा, जानें पूजन विधि, कथा, मंत्र, आरती व महात्म्य

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Navratri : शारदीय नवरात्र का आज प्रथम दिवस है ।आज माता के शैलपुत्री स्वरुप की अराधना की जाती है।आइए पटना के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य और आशियाना दीघा रोड स्थित “ज्योतिषाश्रमः” के संस्थापक डाॅ0सुभाष पाण्डेय से जानते हैं माॅ शैलपुत्री के स्वरुप और इनकी पूजा विधि के बारे में ।ज्योतिषाचार्य डाॅ0सुभाष पाण्डेय बताते हैं कि नवरात्र में सुबह ब्रहम मुहूर्त में उठकर शुद्घ जल से स्नान करें।

इसके बाद घर के किसी पवित्र स्थान पर स्वच्छ मिटटी से वेदी बनाएं। वेदी में जौ और गेहूं दोनों को मिलाकर बोए। वेदी के पास धरती मां का पूजन कर वहां कलश स्थापित करें। इसके बाद सबसे पहले प्रथमपूज्य श्रीगणेश की पूजा करें। फिर वेदी के किनारे पर वैदिक मंत्रोच्चार के बीच देवी मां की प्रतिमा या फोटो स्थापित करें। मां दुर्गा की कुंकुम, चावल, पुष्प, इत्र इत्यादि से विधिपूर्वक पूजा करें। इसके बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।

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नवरात्रि में ये न करें:

>> मान्यताओं के अनुसार नवरात्रि में 9 दिन दाढ़ी-मूंछ और बाल नहीं कटवाई जाती है। इन दिनों नाखून काटने के लिए भी मना किया जाता है.

>> जो व्रतधारी नवरात्रि में कलश स्थापना करते हैं और माता की चौकी स्थापित करते हैं, वे इन 9 दिनों में घर खाली छोडक़र कहीं नहीं जा सकते हैं।

>> मान्यताओं के अनुसार इस दौरान खाने में प्याज, लहसुन और मांसाहार (नॉन-वेज) पर पाबन्दी होती है। इसके अलावा व्रत रखने वालों को नौ दिन तक नींबू काटने पर रोक लगा दी जाती है। साथ ही व्रत रखने वालों को 9 दिन काले कपड़े नहीं पहनने चाहिए। उन्हें बेल्ट, चप्पल-जूते, बैग जैसी चमड़े की चीजों के इस्तेमाल से भी बचने के लिए कहा जाता है।

>> नवरात्र में व्रतधारी नौ दिनों तक खाने में अनाज और नमक का सेवन नहीं करते हैं। पौराणिक आख्यानों के अनुसार, नवरात्रि व्रत के समय दिन में सोने, तम्बाकू चबाने और ब्रह्मचर्य का पालन न करने से भी व्रत का फल नहीं मिलता है।

पहला दिन मां शैलपुत्री का:

नवरात्रा के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। पर्वतराज हिमालय के घर में पुत्री के रूप में माॅ शैलपुत्री का जन्म हुआ था।

ऐसा है मां शैलपुत्री का स्वरुप:

आदि शक्ति ने अपने इस रूप में शैलपुत्र हिमालय के घर जन्म लिया था, इसी कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। शैलपुत्री नंदी नाम के वृषभ पर सवार होती हैं और इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है।
देवी दुर्गा के नौ रूप होते हैं। दुर्गाजी पहले स्वरूप में ‘शैलपुत्री’ के नाम से जानी जाती हैं। ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है।
मां शैलपुत्री की व्रत कथा :
एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। इसमें उन्होंने सारे देवताओं को अपना-अपना यज्ञ-भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया, किन्तु शंकरजी को उन्होंने इस यज्ञ में निमंत्रित नहीं किया। सती ने जब सुना कि उनके पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तब वहां जाने के लिए उनका मन विकल हो उठा।
अपनी यह इच्छा उन्होंने शंकरजी को बताई। सारी बातों पर विचार करने के बाद उन्होंने कहा- प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे रुष्ट हैं। अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया है। उनके यज्ञ-भाग भी उन्हें समर्पित किए हैं, किन्तु हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया है। कोई सूचना तक नहीं भेजी है। ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहां जाना किसी प्रकार भी श्रेयस्कर नहीं होगा।’

शंकरजी के इस उपदेश से सती का प्रबोध नहीं हुआ। पिता का यज्ञ देखने, वहां जाकर माता और बहनों से मिलने की उनकी व्यग्रता किसी प्रकार भी कम न हो सकी। उनका प्रबल आग्रह देखकर भगवान शंकरजी ने उन्हें वहां जाने की अनुमति दे दी।
सती ने पिता के घर पहुंचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बातचीत नहीं कर रहा है। सारे लोग मुंह फेरे हुए हैं। केवल उनकी माता ने ही स्नेह से उन्हें गले लगाया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव भरे हुए थे।
परिजनों के इस व्यवहार से उनके मन को बहुत कष्ट पहुंचा। उन्होंने यह भी देखा कि वहां चतुर्दिक भगवान शंकरजी के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है। दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे। यह सब देखकर सती का हृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से भर उठा।

उन्होंने सोचा भगवान शंकरजी की बात न मान, यहां आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है।
वे अपने पति भगवान शंकर के इस अपमान को सह न सकीं। उन्होंने अपने उस रूप को उसी समय वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया। वज्रपात के समान इस दारुण-दु:खद घटना को सुनकर शंकरजी ने क्रुद्ध हो अपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णत: विध्वंस करा दिया।
सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वे ‘शैलपुत्री’ नाम से विख्यात हुर्ईं। पार्वती, हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं। उपनिषद् की एक कथा के अनुसार इन्हीं ने हैमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व-भंजन किया था।
शैलपुत्री देवी का ध्यान करें और मंत्र बोलें।

मंत्र:

‘ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ओम् शैलपुत्री देव्यै नम:।’
इसके बाद भोग प्रसाद अर्पित करें और मां शैलपुत्री के मंत्र का जाप करें।
यह जप कम से कम 108 होना चाहिए।

मंत्र – ‘ऊँ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:।’

मंत्र संख्या पूर्ण होने के बाद मां के चरणों में अपनी मनोकामना को व्यक्त करके मां से प्रार्थना करें और श्रद्धा से आरती कीर्तन करें।

स्रोत पाठ:

‘प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागर: तारणीम।

धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम॥

त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान।

सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम॥

चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह: विनाशिन।

मुक्ति भुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रमनाम्यहम॥’

माता की उपासना के लिए मंत्र:

‘वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम।

वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम॥’

मां शैलपुत्री को ये लगाएं भोग:

मां शैलपुत्री के चरणों में गाय का घी अर्पित करने से भक्तों को आरोग्य का आशीर्वाद मिलता है और उनका मन एवं शरीर दोनों ही निरोगी रहता है।

माता शैलपुत्री की आरती —

शैलपुत्री मां बैल असवार। करें देवता जय जयकार।

शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी।
पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।

सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिटा दो।
घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।
आरती करते समर्पित तुझको।
दुख हरो माॅ मन निर्मल कर दो।
आरती श्री शैलपुत्री मात की।।
माता की आरती के बाद माॅ से क्षमा प्रार्थना करते हुए दिन भर माता का ध्यान मन में रखते हुए शुद्ध हृदय से अपने कार्यों का निष्पादन करें।सायं काल पुनः संध्यावंदन पूजन और आरती समर्पित कर गीत भजन वाद्यादि से माॅ का नाम कीर्तन करें।

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