Caste Census: (सेंट्रल डेस्क)। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि पिछड़ी जातियों की जाति आधारित गणना करना प्रशासनिक रूप से कठिन और बोझिल काम है। सोच समझकर एक नीतिगत फैसले के तहत इस तरह की जानकारी को जनगणना के दायरे से अलग रखा गया है।
केंद्र सरकार ने साफ किया है कि वह जनगणना में ओबीसी जातियों की गिनती नहीं करवाएगी। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक हलफनामे में केंद्र ने कहा है कि इस तरह की जनगणना व्यावहारिक नहीं है। 1951 से देश में यह नीति लागू है. इस बार भी सरकार ने इसे जारी रखने का फैसला लिया है। पहले से चली आ रही नीति के तहत इस बार भी सिर्फ अनुसूचित जाति, जनजाति, धार्मिक और भाषाई समूहों की गिनती ही की जाएगी।
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सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से इस मामले में हलफनामा दायर किया गया है और कहा गया है कि सामाजिक, आर्थिक और जातिगत जनगणना 2011 में की गई थी और उसमें कई गलती और त्रुटि थी।
केंद्र ने यह भी कहा कि ऐसी जानकारी को जनगणना के दायरे से बाहर करना एक सचेत नीतिगत निर्णय है।
बता दें कि महाराष्ट्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। याचिका में मांग की गई है कि केंद्र और संबंधित अथॉरिटी को निर्देश दिया जाए कि वह राज्य को एसईसीसी (सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना) 2011 में दर्ज ओबीसी के जातीय आंकड़ों की जानकारी मुहैया कराएं। याचिका में राज्य सरकार ने कहा है कि उन्होंने बार- बार इसके लिए गुहार लगाई लेकिन उन्हें जानकारी नहीं दी गई।
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इसी को लेकर केंद्र की ओर से दाखिल एक हलफनामे में सरकार ने कहा कि वर्ष 2011 में सामाजिक-आर्थिक वर्ग में हुई जाति गणना व जाति जनगणना (एसईसीसी 2011) में कई गलतियां थीं।
केंद्र सरकार की ओर से यह हलफनामा सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण मंत्रालय के सचिव की ओर से दाखिल किया गया। इसमें कहा गया है कि केंद्र ने पिछले साल जनवरी में ही एक अधिसूचना जारी कर 2021 की जनगणना के दौरान एकत्र की जाने वाली सूचनाओं की श्रृंखला निर्धारित कर दी है। इस हलफनामे में बताया गया है कि इसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से संबंधित जानकारी सहित कई क्षेत्रों को शामिल किया गया है। लेकिन, इसमें जाति की किसी अन्य श्रेणी का उल्लेख नहीं किया गया है।
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बता दें कि जातिगत जनगणना कराए जाने के मुद्दे को लेकर खासकर बिहार के राजनीतिक दल मुखर हैं। राज्य में NDA की सरकार चला रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पिछले दिनों अन्य दलों के नेताओं के साथ इसी मुद्दे पर एक संयुक्त प्रतिनिधिमंडल लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले थे। प्रतिनिधिमंडल ने जातिगत जनगणना कराए जाने की मांग की थी। बिहार में राष्ट्रीय जनता दल इस मांग को लेकर लगातार आक्रामक बयान दे रहा है। गुरुवार को भी राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने ट्वीट कर जातिगत जनगणना कराए जाने की मांग की थी।
वहीं, गुरुवार को केंद्र सरकार की ओर से हलफनामा दाखिल करने के बाद न्यायाधीश एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 26 अक्तूबर निर्धारित कर दी। सरकार ने हलफनामे में कहा है कि जातियों पर विवरण एकत्र करने के लिए जनगणना आदर्श तरीका नहीं है। इसमें संचालन संबंधी कठिनाइयां इतनी ज्यादा हैं कि जनगणना के आंकड़ों की बुनियादी अखंडता से समझौता होने का खतरा उत्पन्न हो सकता है और जनगणना की मौलिकता भी प्रभावित हो सकती है।