प्रवचन: मानव अपने जन्म के साथ ही सबसे बड़ा ऋणी माता-पिता का होता है

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छपरा। जिस घर मे माता-पिता को आदर, सेवा, सत्कार एवं सम्मान मिलता है, समझो उस पुत्र का जीवन धन्य हो जाता है। उस पुत्र को लोक-परलोक दोनों माता-पिता चरणों मे मिल जाता है।
उक्त कथा प्रसंग सारण जिला के मांझी प्रखंड के जैतपुर गांव स्थित मनोरथ ब्रम्ह बाबा मंदिर के परिसर में चल रहे पांच दिवसीय श्री हनुमंत प्राण प्रतिष्ठात्मक महायज्ञ में अयोध्या नगरी से पधारे श्री श्री 108 बाल संत श्री हरिदास जी महाराज ने कथावाचन में कहीं।

उन्होंने कहा कि मानव अपने जन्म के साथ ही सबसे बड़ा ऋणी अपने माता पिता का होता है। परंतु वहीं पुत्र इस जन्म जन्मान्तर के ऋण से मुक्ति पा लेता है। जब वह पुत्र रूप में श्रवण बन जाता है।

उन्होंने कहा कि मनुष्य का जीवन मिला है तो सबसे पहला कर्तब्य होना चाहिए कि वे माता-पिता की सेवा, बड़ों का आदर सत्कार, अतिथियों का स्वागत करते रहना चाहिए उन्हें जीवन मे कभी दुख नही मिलता है। धरती पर जिन्हें मानव जीवन प्राप्त है जो महत्वपूर्ण जीवन है। इस मानव जीवन को प्राप्त कर जो अधिक पापों से बंधा रहता है वह मूढ है। जो आदमी दुर्लभ मानव जीवन को प्राप्त कर प्रमत्त रहता है, प्रमाद करता है, धर्म नहीं करता वह आदमी नादान, नासमझ, मूढ़ होता है।

संत ने कहा “अत: मनुष्य को इस मानव जीवन का सदुपयोग करना चाहिए, पाप कर्मों के बंधन से बचना चाहिए।हमारा रास्ता सही रहे, सदगति वाला रहे यह अपेक्षित है। उन्होंने कहा, व्यापार में नैतिकता, व्यक्तिगत जीवन में सादगी, विचारों में उच्चता होनी चाहिए। प्रतिदिन कुछ समय धार्मिक क्रिया ध्यान, जप, सामायिक इत्यादि में लगाना चाहिए।”

उन्होंने कहा कि आचार्य श्रावक समाज को प्रेरणा देते हुए कि गृहस्थ हर समय यह सोचे कि मेरे आश्रव कम हो, पाप कर्म की प्रधानता कम हो, आश्रवों का निरोध करने का प्रयास करूं। धर्म की साधना करूं। ताकि मेरी आत्मा का कल्याण हो सके। यही मानव के कल्याण का सदमार्ग है।

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