Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपने एक अहम फ़ैसले में अमान्य (या शून्य) क़रार दी गई शादियों से पैदा हुई संतानों के हक़ में एक अहम फ़ैसला सुनाया है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, देश की शीर्ष अदालत ने ऐसे बच्चों को उनके माता-पिता की पैतृक संपत्ति में हक़ को मान्यता देने का आदेश सुनाया है.
बीबीसी हिंदी की रिपोर्ट के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने कहा है कि ऐसी शादियों से पैदा हुए बच्चों को उनके माता-पिता की पैतृक संपत्ति में हक़ होगा. अदालत का ताज़ा आदेश उन हिंदू परिवारों पर लागू होगा जो संयुक्त परिवार की संपत्ति तय करने वाले ‘मिताक्षरा क़ानून’ को मानते हैं.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की दो विभिन्न खंडपीठों ने इस बारे में एक दूसरे से अलग फ़ैसला सुनाया था. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने अपना रुख़ साफ़ किया है. अमान्य विवाह वे होते हैं जो हिंदू विवाह क़ानून, 1955 की धारा 11 के अनुसार अवैध नहीं होते हैं.
उदाहरण के लिए, यदि किसी की पहले से जीवित पति या पत्नी हो, तो ऐसे शख़्स की दूसरी शादी अमान्य हो जाती है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के ताज़ा फ़ैसले के बाद अब ऐसी शादियों से पैदा हुई संतानें अपने माता पिता के उत्तराधिकारी होने के नाते, हिंदू संयुक्त परिवार की संपत्ति में हिस्सा पाने की हक़दार होंगे.
हालांकि, अदालत ने साफ़ किया है कि ऐसे बच्चों का अपने माता-पिता से इतर संयुक्त परिवार के अन्य हितधारकों की संपत्ति में कोई हक़ नहीं होगा.