(अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस पर दिव्यांगों के जीवन को टटोलती एक रिपोर्ट)
Handicap Day: हर साल विश्व में 3 दिसंबर का दिन अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस (International Handicap Day) के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन का मकसद है – दिव्यागों के प्रति लोगों के व्यवहार में बदलाव लाना और उन्हें उनके अधिकारों के प्रति जागरुक करना।
हर साल इस दिन दिव्यांगों (Handicapped) के विकास, उनके कल्याण के लिए योजनाओं, समाज में उन्हें बराबरी के अवसर मुहैया करने पर गहन विचार विमर्श किया जाता है। हर वर्ष 3 दिसंबर को दिव्यांगों के उत्थान, उनके स्वास्थ्य व सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के उद्देश्य से कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
ऐसे में हम आज फाईलेरिया (Filaria) जैसी गंभीर बीमारी से ग्रसित लोगों की चर्चा करेंगे तथा उनके दर्द को को समझने की कोशिश करेंगे। फाईलेरिया बीमारी मरीजों को दिव्यांग के समान बना देती है। जिससे चलने-फिरने में कठिनाई शरीरिक पीड़ा का सामना करना पड़ता है।
इंसान कैसे आता है फाइलेरिया की चपेट में
फाइलेरिया बिमारी फाइलेरिया संक्रमण मच्छरों के काटने से फैलती है। ये मच्छर फ्युलेक्स एवं मैनसोनाइडिस प्रजाति के होते हैं। जिसमें मच्छर एक धागे समान परजीवी को छोड़ता है। यह परजीवी हमारे शरीर में प्रवेश कर जाता है। सामान्यता यह संक्रमण शुरूआती बचपन में ही जाता है, यद्यपि यह बीमारी वर्षों बाद स्पष्टतः प्रकट होती है।
इस प्रकार, सामान्य एवं स्वस्थ दिखनेवाले व्यक्ति को कुछ सालों बाद टांगों, हाथों एवं शरीर के अन्य रोगों में अत्यधिक सूजन उत्पन्न होने लगती है। इन प्रभावित अस्वस्थ चमड़ों पर विभिन्न प्रकार के जीवाणु तेजी से पनपने लगते हैं। साथ ही प्रभावित अंगों की लसिका ग्रंथियां इन अधिकाधिक संख्या में पनपें जीवाणुओं को छान नहीं पाते है। और इसके कारण प्रभावित अंगों में दर्द, लालपन एवं रोगी को बुखार हो जाता है।
क्या हैं फाइलेरिया के लक्षण
हाथ-पैर, अंडकोष व शरीर के अन्य अंगों में सुजन के लक्षण होते हैं। प्रारंभ में या सूजन अस्थायी हो सकता है, किन्तु बाद में स्थायी और लाइलाज हो जाता है। हाथी पाँव खानदानी रोग नहीं है, मगर जैसा कि कई लोग विश्वास करते हैं इससे मनुष्य की प्रजनन शक्ति पर कोई असर नहीं पड़ता है। अन्य रोगों की तरह हाथी पांव की भी रोकथाम की जा सकती है तथा इसका उपचार संभव है।
मरीजों के अपने-अपने दर्द और अपनी समस्याएं
जीवन भर का दर्द बन गयी बीमारी:
शुरूआती दौर में अनदेखा करना और इलाज नहीं करना मेरे जीवन के लिए मुश्किल भरा हो गया है। मुझे पैर में फाईलेरिया हो गया। अब जीवन भर के लिए दर्द बनकर रह गया। यह बिमारी पूरी तरह मुझे अपाहीज बना दी है। 13 वर्षों से यह बीमारी है।
(रंजीत कुमार, कशमर गांव, सोनपुर सारण)
फाईरिया ने मुझे विकलांग बना दिया:
मुझे 20 वर्षों से यह बीमारी है। मेरा जीवन दर्दों से भरा हो गया। चलने में कठिन, बैठने में परेशानी है। कहीं आ जा नहीं सकता। अब अपनी जीवन के गुजारा के लिए किराना दुकान चलाता हूं। इस गंभीर बिमारी से बचने के लिए हर किसी को जागरूक होने की जरूरत है। ताकि मेरे जैसा जीवन और किसी का नहीं हो।
(संतोष कुमार, किराना दुकानदार, सैदपुर, सारण)
कष्ट और दर्द में गुजरती है रात:
इस बीमारी से जुझते हुए मुझे 41 साल हो गया। जागरूकता की कमी और जानकारी अभाव में शुरूआती दौर में अनदेखा करना भारी पड़ा। अब तक एक-एक रात मेरे जीवन का कष्ट और दर्द भरी रात है। काफी पीड़ा होती है।
लोग हीन भावना से भी देखते हैं। जीवन को ही अपाहीज बना दिया। फाइलेरिया के असर से जन्मी इस विकलांगता ने जिंदगी को मायूस किया है।इसने ना सिर्फ सामाजिक बल्कि आर्थिक जीवन पर असर पड़ा है। फिर भी इन सबके साथ ही जिंदगी जीने का फैसला लेना ही पड़ा। लेकिन यदि बीमारी से जन्मी विकलांगता को दूर करने के लिए दवा खाने की जरूरत हो तो सभी लोगों को इससे पीछे नहीं रहना चाहिए।
(मंजू देवी, हंसराजपुर, पूछरी बाजार, सारण)
अब नयी पीढ़ी को इस बीमारी से बचाना है:
अब तो मैंने अपनी जिन्दगी को जी ली है। मेरा आधा से ज्यादा उम्र बीत गया है। यह बीमारी काफी गंभीर है। पैरों से दिव्यांग को हीं दिव्यांग नहीं कहा जा सकता है। हम जैसे मरीज भी अपने आप दिव्यांग समझते हैं। उम्र की इस पड़ाव में यह दर्द सहना काफी मुश्किल हो जाता है। रात-रात भर जगकर दर्द में जीवन गुजारना पड़ता है। पहले की तरह चलना, दौड़ना सब बंद हो गया। आसपास सामाजिक कंलक के डर से घर से निकलना भी बंद कर दिया।
(भागमती देवी, शैदपुर, पहलेजा, सोनपुर सारण)