Priyanka meets Mayawati : कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi meets Mayawati) ने रविवार, 14 नवंबर 2021 को बसपा सुप्रीमो मायावती से मुलाकात की। हालांकि, यह मुलाकात राजनीतिक मीटिंग नहीं थी बल्कि, प्रियंका गांधी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अध्यक्ष मायावती की मां के निधन पर संवेदना जताने पहुंची थीं।
वैसे जब भी दो बड़े राजनेताओं की मुलाकात होती है, कई तरह के कयास लगने शुरू हो जाते हैं। खासकर तब, जब कोई चुनाव सामने हो और दोनों राजनेता उस चुनाव के प्रमुख चेहरों में से हों। लिहाजा, प्रियंका गांधी और मायावती की मुलाकात के भी पोलिटिकल मायने निकाले जाने लगे हैं और निहितार्थ की चर्चा होने लगी है।
वैसे सीधे नजरिये से देखा जाय तो यह मुलाकात खालिस व्यक्तिगत दिखती है, भले ही वह सार्वजनिक रूप से हुई हो। किसी के निधन के बाद उसके प्रियजनों को संवेदना व्यक्त करना आम परिपाटी है। लेकिन, प्रियंका की मायावती से मुलाकात इस मायने में अहम लगती है कि उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव -2022 को लेकर मायावती किसी दल के साथ गठजोड़ से साफ तौर पर इंकार कर चुकी हैं।
हालांकि, राजनीति में 2 जोड़ 2 हमेशा 4 ही नहीं होता। बल्कि, ज्यादातर मौकों पर राजनीति का गणित इससे ज्यादा गूढ़ होता है। इस नजरिए से प्रियंका-मायावती के मुलाकात का महत्व दिखने लगता है।
उत्तरप्रदेश में फिलहाल योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली बीजेपी की सरकार है। समाजवादी पार्टी मुख्य विपक्ष की भूमिका में है। 2017 में भारतीय जनता पार्टी को प्रचंड बहुमत मिला था और वह राज्य विधानसभा की 403 में से 325 सीटें जीतकर सत्ता पर काबिज हुई थी। हालांकि, उसके बाद से गंगा में काफी पानी बह चुका है और परिस्थितियां बदल चुकी हैं।
किसान आंदोलन, बढ़ती महंगाई, कोरोनाकाल की परिस्थिति, पेट्रोल-डीजल के दामों, बेरोजगारी आदि को गिनाते हुए राजनीतिक विश्लेषक आसन्न विधानसभा चुनावों में बीजेपी की स्थिति को कमतर आंक रहे हैं। लेकिन उनका यह भी मानना है कि विपक्षी खेमे की बिखराहट बीजेपी के लिए संजीवनी का काम कर सकती है।
उत्तरप्रदेश में बीजेपी ने छोटे-छोटे दलों के साथ गठबंधन की रणनीति अपनाई है। वहीं, बसपा साफतौर पर कह चुकी है कि वो गठबंधन नहीं करेगी। समाजवादी पार्टी भी किसी बड़े दल के गठबंधन से फिलहाल परहेज करारी दिख रही है। ऐसे में कांग्रेस राज्य में अलग-थलग पड़ती दिख रही है।
उत्तरप्रदेश में दावे चाहे जो हो रहे हों, जमीनी हकीकत यही है कि राजनीतिक व्हील मुख्य तौर पर घूम-फिरकर चार दलों – बीजेपी, सपा, बसपा और कांग्रेस के इर्द-गिर्द घूमती नजर आ रही है।
चारों दल फिलहाल सीधे एक- दूसरे के आमने -सामने हैं। ऐसे में विपक्ष के मतों के चार अलग-अलग केंद्र बन गए हैं, जिसका सीधा लाभ बीजेपी को मिल जा सकता है। ऐसे में बसपा प्रमुख मायावती के साथ प्रियंका की मुलाकात अहम हो जाती है।
चर्चा है कि संवेदना भरी इस मुलाकात के बाद रिश्तों पर जमे बर्फ पिघल सकते हैं और आगे राजनीतिक रूप से दोनों दल पास आ सकते हैं। हालांकि, अभी यह बात दूर की कौड़ी लग सकती है लेकिन कहा जाता है कि राजनीति में जो होता है कि वो दिखता नहीं है और जो दिखता है वो होता नहीं है। ऐसे में इस मुलाकात के बाद निकट भविष्य में दोनों दलों की निकटता की खबरे सामने आने लगे तो आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए।
बता दें कि कांग्रेस महासचिव ने आज रविवार की सुबह बसपा नेता से उनके 3 त्यागराज मार्ग स्थित आवास पर मुलाकात की। मायावती की मां रामरती 92 साल की थींं। शनिवार को दिल का दौरा पड़ने से दिल्ली के एक अस्पताल में उनका निधन हो गया। पिछले कुछ समय से उनका इलाज चल रहा था। मां के निधन की सूचना मिलते ही मायावती दिल्ली के लिए रवाना हो गई थीं। बसपा ने एक बयान में कहा कि रविवार को दिल्ली में अंतिम संस्कार किया जाएगा।
बसपा की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि करीब एक साल पहले मायावती के पिता का भी 95 साल की उम्र में निधन हो गया था।
पिछले कुछ दिनों से मायावती ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में होने वाले चुनाव के लिए प्रचार शुरू कर दिया है। बसपा प्रमुख ने कहा है कि वह किसी भी राजनीतिक दल के साथ गठबंधन नहीं करेंगी। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि उनकी पार्टी को “पूर्ण बहुमत मिलेगा।
जैसा कि हमें 2007 में मिला था। बसपा का किसी भी पार्टी के साथ कोई चुनवी समझौता नहीं करेगी। हम अपने दम पर चुनाव लड़ेंगे। हम समाज के सभी वर्गों के लोगों को एक साथ लाने के लिए एक समझौता कर रहे हैं। यह गठबंधन स्थायी है। किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन करने का इरादा नहीं है।
मायावती ने यह भी आरोप लगाया कि समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। बसपा प्रमुख ने प्रियंका गांधी की पार्टी कांग्रेस पर भी आरोप लगाया कि वह झूठे चुनावी वादों के साथ मतदाताओं को गुमराह करने की कोशिश कर रही है।
उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस ने अपने 50 फीसदी चुनावी वादे पूरे किए होते तो भी केंद्र, उत्तर प्रदेश और ज्यादातर राज्यों में सत्ता से बाहर नहीं होगी। बता दें कि उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों के लिए अगले साल की शुरुआत में चुनाव होने हैं।