चँद्रयान की वैज्ञानिक विनती भाटिया जिन्होंने तमाम असफलताओं के बीच पकड़ ली सफलता की डोर

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यह कहानी कई असफलताओं के बीच से सफलता की एक डोर पकड़ लेने वाली विनती भाटिया की है। 90 के दौर में पैदा हुई इस लड़की के जीवन में पढाई चुनौती बनकर आती रही तो इसने भी उस चुनौती को स्वीकार किया। कम अच्छी छात्रा से बेहतर छात्रा के बीच की दूरी को केवल अपनी मेहनत और लगन से तय किया। हर परिवार की अपनी आर्थिक मुश्किलें होती हैं, तो इस परिवार की भी थीं। माँ ने उस छोर को संभाला तो विनती की पढ़ाई ने अपने सफ़र की शुरूआत की।

किसे पता था कि चँद्र मोहिनी भाटिया की बेटी विनती एक दिन चँद्रयान अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। कानपुर कैंट स्कूल की टीचर रहीं चँद्र मोहिनी भाटिया ने अपने बच्चों को अच्छी तालीम देने का प्रण किया। तब विनती पढ़ाई में कमज़ोर थी। बहुत से बच्चे पढ़ाई में कमज़ोर होते ही हैं लेकिन माँ की ज़िद थी कि बेटी अच्छे स्कूल में पढ़ेगी। गुरु नानक पब्लिक सीनियर सेकेंड्री स्कूल में नामांकन करा दिया। इस सफ़र में पिता कृष्ण गोपाल भाटिया ने भी पूरा साथ दिया। आठवीं तक किसी तरह पहुंचने के बाद नौवीं से विनती ने पढ़ाई का सुर पकड़ लिया और किताबों में समा गईं। अपने प्रिय दादाजी को खोने के ग़म से बचने के लिए किताबों को सहारा बना लिया।

विनती जो कमज़ोर लड़की मानी जाती थी, अब क्लास में अच्छा करने लगी। उनकी टीचर को दिखने लगा कि बहुत पीछे रह जाने वाली यह लड़की धीरे-धीरे आगे आ रही हैं। टीचर ने क्लास की टॉपर को सतर्क किया कि विनती को देखा करो। दसवीं और ग्यारवहीं के दौरान वह पढ़ाई पर पकड़ बनाती गई और बारहवीं में बहुत अच्छा किया।

फिर पहुंची IMS इंजीनियरिंग कॉलेज ग़ाज़ियाबाद। मैकेनिकल इंजीयनियरिंग चुन लिया जिसमें कम लड़कियां पढ़ती थीं। मगर यहां एक सेमेस्टर में मन मुताबिक परिणाम नहीं आया तो दिल टूट गया । हार नहीं मानी। विनती ने अपने आप को संभाला और एक बार फिर से ख़ुद को कस लिया। अगरे चार साल तक वो सबसे आगे रही। इंजीनियरिंग के बाद आई टी सेक्टर में काम करने हैदराबाद गई, वहां मन नहीं लगा तो कानपुर लौट आई। और तय किया कि मैकेनिकल इंजीनियरिंग में ही आगे पढ़ाई करेगी।

DRDO ज्वाइन किया। अब वह वैज्ञानिक बनने का सपना देखने लग गई। DRDO की तरफ से फेलोशिप पर IIT दिल्ली में पढ़ने का मौका मिला और नौकरी करने के साथ-साथ विज्ञान में मास्टर की पढ़ाई पूरी की।रात-रात भर लाइब्रेरी में पढ़ाई करने लग गई और एक बार फिर से गेट की परीक्षा दी। पहली बार में मन लायक सफलता नहीं मिली थी।दूसरी बार में 1000 के भीतर रैंक आ गया। सार्वजनिक क्षेत्र की कई कंपनियों से नौकरी का प्रस्ताव आया मगर अलग-अलग कारणों से टलता गया। 2015 में विनती सरकारी स्कॉलरशिप पर पीएचडी करने अपने शहर पहुंच गई। आई आई टी कानपुर। जहां उसने पढ़ने का सपना देखा था लेकिन कितनी लंबी दूरी तय कर वह आई आई टी कानपुर पहुंची।

विनती ने तय किया कि इसरो की परीक्षा देगी। जिस विषय से परीक्षा में बैठी, उसके लिए पूरे भारत में एक ही सीट थी। विनती सफल हो गई। जून 2016 को वह इसरो का हिस्सा हो गई। चँद्र मोहिनी की बेटी अब इसरो पहुंच चुकी थी। इन सात सालों में उसने अपनी लगन से वहां के वैज्ञानिकों में साख बना ली। उसे सबसे अच्छे ग्रेड मिलने लगे और प्रमोशन होने लगा। एक दिन चंद्र मोहिनी की बेटी विनती चँद्रयान की टीम का हिस्सा बन गई।

डिस्क्लेमर : मूल आलेख प्रसिद्ध पत्रकार श्री रवीश कुमार का है

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