UP Chunav : क्या है अखिलेश यादव के करहल सीट चुनने की मुख्य वजह, जानें जातिगत गणित

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Uttarpradesh Chunav : (लखनऊ)। समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के प्रमुख अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने करहल सीट से चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। समाजवादी पार्टी के लिए सबसे मुफीद इस सीट पर 2002 के बाद से लगातार सपा का कब्जा है। चार बार के वर्तमान विधायक सोबरन सिंह (Sobaran Singh ) के प्रस्ताव पर सपा ने गुरुवार को यह फैसला लिया। सोबरन ने कहा कि अखिलेश बस नामांकन कर जाएं, उन्हें रिकार्ड मतों से जिताकर भेजेंगे। करहल (Karahal Constituency) को लेेकर सपा के इस आत्‍मविश्‍वास की कई वजहें हैं। आइए उनमें से कुछ पर एक नज़र डालें-

करहल सीट समाजवादी पार्टी के गठन से उसका गढ़ रही है। तीन दशक से पार्टी का सीट पर कब्जा है। अपवादस्वरूप 2002 के चुनाव में सोबरन सिंह यादव भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते लेकिन कुछ माह बाद वह भी समाजवादी पार्टी का हिस्सा बन गए। तब से लगातार यह सीट सपा के कब्जे में ही है। करहल सीट सपाई दबदबे के साथ जातीय समीकरण के लिहाज से भी बेहद मुफीद है, क्योंकि कुल मतदाताओं के लगभग 38 फीसदी यादव है।

करहल चुनने की मुख्य वजहें-

-समाजवादी पार्टी के गठन से उसका घर रहा है करहल

मुलायम सिंह यादव ने भी किया है क्षेत्र का प्रतिनिधित्व

मुलायम ने करहल के इंटर कॉलेज से शिक्षा ली थी

-सपा ने आंतरिक सर्वे में गोपालपुर व गुन्नौर के मुकाबले करहल सीट को ज्यादा अनुकूल पाया

-38 फीसदी यादव वोट हैं करहल में

पृथ्वीराज चौहान से जुड़ा है इतिहास

करहल के ऐतिहासिक मोटामल मंदिर से महाराजा पृथ्वीराज चौहान का जुड़ाव रहा है। पृथ्वीराज चौहान कन्नौज के राजा जयचंद की बेटी संयोगिता से प्रेम करते थे। कन्नौज के राजा जयचंद ने जब अपनी बेटी संयोगिता के विवाह लिए स्वयंवर का आयोजन किया तो पृथ्वीराज को छोड़कर देश के तमाम राजा बुलाए गए थे। निमंत्रण न मिलने से नाराज महाराजा पृथ्वीराज ने अपने प्रेम को पाने के लिए कन्नौज पर चढ़ाई कर दी। पृथ्वीराज चौहान स्वयंवर स्थल से संयोगिता को लेकर दिल्ली ले जाने लगे तब जयचंद की सेना ने पृथ्वीराज को घेर लिया। पृथ्वीराज के सेनापति मोटामल ने उन्हें और संयोगिता को दिल्ली के लिए रवाना कर दिया था। भीषण युद्व में मोटामल शहीद हो गए थे। मोटामल की मौत से दुखी पृथ्वीराज ने मोटामल की स्मृति में करहल में मंदिर बनवाया था। तब करहल का नाम करील था।

1956 में वजूद में आई थी ये सीट

करहल विधानसभा सीट 1956 के परिसीमन के बाद प्रकाश में आई। 1957 में पहलवान नत्थू सिंह यादव प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से पहले विधायक चुने गए। इसके बाद तीन बार स्वतंत्र पार्टी का प्रत्याशी जीता। अगले चुनाव में भारतीय क्रांति दल व जनता पार्टी के टिकट पर नत्थू सिंह निर्वाचित हुए। कांग्रेस के टिकट पर 1980 में पहली बार शिवमंगल सिंह जीते लेकिन उसके बाद जाति की हवा बहने लगी। 1980 में हारने वाले बाबूराम लगातार पांच बार विधायक चुने गए। 1985 में लोकदल के टिकट पर और उसके बाद क्रमश: दो बार जनता पार्टी व दो बार सपा के टिकट पर निर्वाचित हुए। 2002 से सोबरन सिंह भाजपा से जीते लेकिन कुछ दिन बाद ही सपा में आ गए और उसके बाद हुए तीनों चुनाव सपा के टिकट से जीत हासिल की है।

सर्वे से सहमति

सपा ने आंतरिक सर्वे में गोपालपुर व गुन्नौर के मुकाबले करहल सीट को ज्यादा अनुकूल पाया। गुरुवार को मैनपुरी पार्टी संगठन ने अखिलेश यादव से करहल से चुनाव लड़ने का अनुरोध किया जिसे अखिलेश यादव ने मान लिया।

साभार-हिंदुस्तान ऑनलाइन