Dashahra 2021 : दशहरा में शमी,अपराजिता व नीलकंठ का क्या है महत्व, क्या करें कि हो पूरा लाभ

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Dashahra 2021 : दशहरा में शमी और अपराजिता वृक्ष (Aparajita Tree) का पूजन तथा नीलकंठ पक्षी (Neelkanth bird) के दर्शन को शास्त्रों में अत्यंत महत्वपूर्ण बताया गया है। इस संदर्भ में विशेष बातें जानते हैं लब्ध प्रतिष्ठित ज्योतिषाचार्य डाॅ0सुभाष पाण्डेय जी से।पटना के दीघा आशियाना रोड स्थित “ज्योतिषाश्रम ” के संस्थापक डाॅ0 पाण्डेय बताते हैं कि दशहरा के दिन शमी पत्र और अपराजिता के पौधे मंत्रों से अभिमंत्रित कर दाहिनी कलाई में धारण करने तथा कलश (Kalash) के पास रोपे गए जई (जयन्ती)को दाहिनी कान पर धारण करने से वर्ष पर्यन्त घर परिवार में सुख शान्ति बनी रहती है और सर्वत्र विजय प्राप्त होता है।इस दिन नीलकंठ पक्षी का दर्शन बहुत शुभ माना जाता है।

धर्मानुसार दशहरा (Dashahra) के दिन शमी (Shami tree) के पेड़ की पूजा भी की जाती है। कहते हैं कि इस दिन शमी के वृक्ष को पूजना बहुत ही शुभकारी है। क्योंकि दशहरा के द‌िन शमी के वृक्ष की पूजा करें या संभव हो तो इस द‌िन अपने घर में शमी के पेड़ लगाएं और न‌ियम‌ित दीप द‌िखाने से समृद्धि बढ़ती है।

दशहरा के दिन शमी पूजा का महत्व बहुत अधिक है। दशहरा की शाम को शमी वृक्ष की पूजा करने से बुरे स्वप्नों का नाश , धन , शुभ करने वाले शमी के पूजा कर श्रीराम ने लंका पर विजय पाया था, पांडवों के अज्ञातवास में सहयोग मिला था। इससे शमी के पेड़ की धैर्यता ,तेजस्विता एवं दृढ़ता का भी पता चलता है।इसमें अग्नि तत्व की प्रचुरता होती है। इसी कारण यज्ञ में अग्नि प्रकट करने हेतु शमी की लकड़ी खास होती है।

मान्यता है क‌ि दशहरा के द‌िन कुबेर (Kuber) ने राजा रघु (King Raghu) को स्वर्ण मुद्राएं देने के ल‌िए शमी के पत्तों को सोने का बना द‌िया था। तभी से शमी को सोना देने वाला पेड़ माना जाता है।
एक और धार्मिक मान्यता महाभारत (Mahabharat) से जुड़ी है। दुर्योधन (Duryodhan) ने पांडवों (Pandawas) को बारह वर्ष के वनवास के साथ एक वर्ष का अज्ञातवास दिया था । तेरहवें वर्ष यदि उनका पता लग जाता तो उन्हें पुनः 12 वर्ष का वनवास भोगना पड़ता। इसी अज्ञातवास में अर्जुन ने अपना धनुष एक शमी वृक्ष पर रखा था तथा स्वयं वृहन्नला वेश में राजा विराट के यहां नौकरी कर ली थी। जब गोरक्षा के लिए विराट के पुत्र धृष्टद्युम्न ने अर्जुन को अपने साथ लिया, तब अर्जुन ने शमी वृक्ष पर से अपने हथियार उठाकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी।

शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान राम (lord ram) ने रावण(Ravan) का वध करके मां सीता को लंका से छुड़वाया था। यानि कि इस दिन सत्य की असत्य और अच्छाइयों की बुराइयों पर विजय की प्राप्ति हुई थी। शारदीय नवरात्र के दसवें दिन यानि आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को ये पर्व मनाया जाता है।

इस दिन को लेकर ऐसी मान्यता है कि नीलकंठ के दर्शन करना अति शुभ होता है। नीलकंठ पक्षी भगवान शिव का प्रतीक है, जिनके दर्शन से सौभाग्य और पुण्य की प्राप्ति होती है। ऐसे में अगर आज के दिन आपको कहीं भी नीलकंठ के दर्शन हो जाएं तो उसे देखते हुए कहना चाहिए कि नीलकंठ पक्षी, तुम इस पृथ्वी पर आए हो, तुम्हारा गला नीला एवं शुभ्र है, तुम सभी इच्छाओं को देने वाले हो, तुम्हें नमस्कार है। तिथितत्व के पृष्ठ 103 में खंजन पक्षी के देखे जाने के बारे में और वृहत्संहिता के अध्याय 45 में नीलकंठ के कब किस दिशा में दिखने से मिलने वाले फल के बारे में भी विस्तार से बताया गया है।
बहुत से लोग दशहरे के दिन गंगा स्नान करने को भी बहुत महत्वपूर्ण बताया गया है। कहा जाता है कि दशहरे के दिन गंगा स्नान करने वाले को कई गुना बढ़ा फल मिलता है। इसलिए दशहरे के दिन लोग गंगा या अपने पास किसी पवित्र नदी में स्नान करने जाते हैं।
आज विजयदशमी के दिन अपने काम से संबंधित शस्त्रों की पूजा करने का भी विधान है। इससे जरूरत पड़ने पर ये आपके काम आते हैं।
इस दिन अपने घर या फिर मंदिर में लाल पताका भी लगानी चाहिए। ये पताका जीत का प्रतीक होती है।
पर्व और त्योहार हमारे जीवन में नए रंग भरते हैं। दशहरा (विजयदशमी भी इसी तरह का एक त्यौहार है। अश्विन (क्वार) मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को इसका आयोजन होता है। भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था। इसके अलावा देवी दुर्गा ने नौ रात्रि एवं दस दिन के युद्ध के उपरान्त महिषासुर पर विजय प्राप्त की थी।

इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। दशहरा पूजा का भी इस दिन ख़ास महत्व है। ऐसी भी मान्यता है कि इस दिन अपराजिता नामक पौधे की पूजा करने से विशेष लाभ होते हैं। इससे आपको हर काम में सफलता प्राप्त होता रहता है।
यह त्यौहार सम्पूर्ण भारत में उत्साह और धार्मिक निष्ठा के साथ मनाया जाता है। इस दिन भगवान राम ने राक्षस रावण का वध कर माता सीता को उसकी कैद से छुड़ाया था। राम-रावण युद्ध नवरात्रों में हुआ था। रावण की मृत्यु अष्टमी-नवमी के संधिकाल में हुई थी और उसका दाह संस्कार दशमी तिथि को हुआ। जिसका उत्सव दशमी के दिन मनाया गया। दशहरा पूजा का भी बहुत अधिक महत्व होता है। जो व्यक्ति पूरे विधि-विधान के साथ दशहरा पूजा करता है, उसे अनेक फलों की प्राप्ति होती है।
दशहरे के दिन कई जगह अस्त्र पूजन भी किया जाता है। वैदिक हिन्दू रीति के अनुसार इस दिन श्रीराम के साथ ही लक्ष्मण जी, भरत जी और शत्रुघ्न जी का पूजन करना चाहिए। इस दिन सुबह घर के आंगन में गोबर के चार पिण्ड मण्डलाकर (गोल बर्तन जैसे) बनाएं। इन्हें श्रीराम समेत उनके अनुजों की छवि मानना चाहिए।

गोबर से बने हुए चार बर्तनों में भीगा हुआ धान और चांदी रखकर उसे वस्त्र से ढक दें। फिर उनकी गंध, पुष्प और द्रव्य आदि से पूजा करनी चाहिए। पूजा के पश्चात् ब्राह्मणों को भोजन कराकर स्वयं भोजन करना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य वर्ष-भर सुखी रहता है।इस दिन लोग नया कार्य प्रारम्भ करते हैं।इस दिन शस्त्र-पूजा भी की जाती है।

विजयदशमी पूजन के दौरान अपराजिता पूजा करना शुभ माना जाता है। दशहरे का उत्सव शक्ति और शक्ति का समन्वय बताने वाला उत्सव है। इस दिन अपराजिता की पूजा करने से आपको वर्ष-भर हर काम में सफलता मिलती है तथा घर परिवार में खुशी और शांति बनी रहती है। यदि आपके घर अपराजिता का पौधा न हो तो आप अन्य कहीं जाकर भी इसकी पूजा कर सकते हैं। दशहरा पूजा में इन दोनों पौधों की पूजा का विशेष महत्व है।
यह हर्ष और उल्लास तथा सफलता का पर्व है। भारतीय संस्कृति वीरता की पूजक है, शौर्य की उपासक है। व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता प्रकट हो इसलिए दशहरे का उत्सव रखा गया है। दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है। जैसा कहा गया है कि इस दिन अपराजिता की पूजा आपको विशेष लाभ देगी। इससे आपके हर काम में सफलता की संभावना बढ़ जायेगी।
इस पर्व को भगवती के ‘विजया’ नाम पर भी ‘विजयदशमी’ कहते हैं। इस दिन भगवान रामचंद्र चौदह वर्ष का वनवास भोगकर तथा रावण का वध कर अयोध्या पहुंचे थे। इसलिए भी इस पर्व को ‘विजयदशमी’ कहा जाता है।

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