Bihar Ke Mata Mandir : आरा (Ara) मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बिहिया (Bihia) में स्थापित है लोक आस्था की प्रतीक प्रसिद्ध महथिन माई मंदिर। महथिन माई के प्रति लोगों की गहरी आस्था है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कोई यदि जीवन में गलत आचरण से धन प्राप्त करता है, धन और बल के बदौलत लोगों पर गलत तरीके से प्रभाव स्थापित करना चाहता है तो लोग एक ही बात कहते है कि यह महथिन माई की धरती है , यहां न तो ऐसे लोगों की कभी चला है न चलेगा।
इस मंदिर का कोई लिखित इतिहास (Written History) तो नहीं है पर प्रचलित इतिहास के अनुसार एक जमाने में इस क्षेत्र में हैहव वंश (Haihay Wansh) का राजा रणपाल (King Ranpal) हुआ करता था जो अत्यंत दुराचारी था। उसके राज्य में उसके आदेशानुसार नव विवाहित कन्याओं का डोला (Dola) ससुराल से पहले राजा के घर जाने का चलन था। महथिन माई जिनका प्राचीन नाम रागमति था।
वे पहली बहादुर महिला (Brave woman) थी जिन्होंने इस डोला प्रथा का विरोध करते हुए राजा के आदेश को चुनौती दी। बताया जाता है कि राजा के सैनिकों और महथिन माई (रागमति )के सहायकों के बीच जम कर युद्ध हुआ। इस दौरान महथिन माई खुद को घिरता देख सती हो गई। उनके श्राप से दुराचारी राजा रणपाल के साथ उसके वंश का इस क्षेत्र से विनाश हो गया।
आज भी हैहव वंश के लोग पूरे शाहाबाद (Shahabad) क्षेत्र में न के बराबर मिलते हैं। महथिन माई के बारे में चमत्कार से जुड़े कई किस्से आज भी सुने जाते हैं। कहा जाता है कि एक अंग्रेज अधिकारी जो बिहिया से गुजरने वाला रेल लाइन बिछवा रहा था वह कुष्ट रोग से पीड़ित था। रेल लाइन महथिन माई के मिट्टीनुमा चबूतरे के ऊपर से होकर गुजरना था।
बताया जाता है दिन में लाइन बिछता और रात में उखड़ा पाया जाता। परेशान अंग्रेज अफसर को सपना आया कि लाइन टेढ़ा करके ले जाओ तुम्हारा कुष्ट रोग दूर हो जाएगा। ऐसा हुआ भी। आज भी महथिन माई मंदिर के समीप रेल लाइन टेढ़ा होकर हीं गुजरा है।बहुत पहले इस जगह पर मिट्टी का चबूतरा था बाद में ईट का बना। जैसे जैसे लोगों की आस्था बढ़ती गयी कालांतर में चबूतरा मंदिर का स्वरूप ले लिया।
लोगों के सहयोग से मंदिर परिसर में शंकर जी और हनुमान जी की मूर्ति स्थापित हो गया है। इसके अलावा सरकारी स्तर पर धर्मशाला,शौचालय तथा स्थानीय रामको कम्पनी द्वारा शौचालय का निर्माण कराया गया है वहीं मनौती पूरी होने पर एक श्रद्धालु ने भव्य यात्री शेड का निर्माण कराया है।
मंदिर गर्भगृह में महथिन माई का ¨पिंडी स्थापित है तथा उनके अगल बगल के दो पिंडियों के बारे में कहा जाता है वो उनकी सहायिकाओं की प्रतीक है। श्रद्धालु उनकी भी पूजा करते है।सप्ताह में दो दिन शुक्रवार तथा सोमवार को यहां मेला लगता है। इसके अलावा रोज ही दूर दूर से बड़ी संख्या में श्रद्धालु मनौती मांगने या पूरा होने पर यहां पूजा के लिए पहुंचते है।
लग्न मुहूर्त के अलावा सालो भर यहां ब्याह का आयोजन होता है जिसमें सैकड़ों जोड़े महथिन माई को साक्षी मानकर दांपत्य सूत्र में बंधते है। यहां शादियां बिना दहेज और फिजूल खर्ची के सम्पन्न होती है। सती होने के पूर्व और सती होने के बाद आज भी महथिन माई समाजिक कुरीतियों के खिलाफ ज्वाला बनकर जल रही है। पहले उन्होंने डोला प्रथा का विरोध किया था अब उनकी छत्र-छाया में दहेज जैसे गलत प्रथा से तौबा करते देखे जा रहे हैं। महथिन माई के दंर्शन के लिए प्रतिदिन सैकड़ों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।
मंदिर में प्रतिदिन श्रद्धालुओं के आने का तांता लगा रहता है। स्थानीय लोग तो अपने दिनचर्या की शुरुआत मां की अराधना से करते हैं। खासकर नवरात्र के अलावे अन्य व्रत व त्योहार के मौके पर यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। लोगों को विश्वास है कि मां की कृपा से यहां देवी सती शिरोमणि महथिन माई को लेकर श्रद्धालु महिलाओं की धारणा है कि इनकी आराधना से सुहाग सुरक्षित रहता है।
यही कारण है कि यह महथिन माई सुहाग की देवी के रूप में इस क्षेत्र में विख्यात है। मंदिर के प्रवेश द्वार से अंदर परिसर में प्रवेश करते ही बायें तरफ शिव मंदिर तथा दाहिने तरफ राम जानकी मंदिर स्थित है। मुख्य मंदिर के गर्भ गृह में एक चबूतरा है जहां बराबर एक चौमुख दिया जलते रहता है। चबूतरे पर बीचोबीच दो गोलाकार पीतल का परत चढ़ाया हुआ महथिन मां का प्रतीक चिह्न है।
इसी तरह का दो गोला मुख्य गोले के दायी और बायी ओर स्थित है। जिसके बारे में बताया जाता है कि दो गोला महथिन माई और उनके बहन का प्रतीक चिह्न और दायें-बायें तरफ वाला गोला महथिन माई के दो परिचारिकाओं का स्मृति चिह्न है। इन्हीं प्रतीक चिह्नों के समक्ष भक्त मनौतियां मानते है, तथा मनोकामनापूर्ण होने पर चुनरी चढ़ाते हैं।
लोगों का कहना है कि वर्षो पूर्व यहां महुआ के पेड़ के नीचे खुले आकाश में मिट्टी का एक चबूतरा था जिस पर महथिन मां की पूजा की जाती थी। मंदिर कब बना और किसने बनवाया इसके समय और काल पर इतिहास में कुछ भी दर्ज नहीं है। हालांकि गर्भ गृह के प्रवेश द्वार पर दायें-बायें बोलचाल की भोजपुरी भाषा और टूटी-फूटी चौपाई दोहों के रूप में सती शिरोमणि महथिन माई के पुण्य प्रताप से संबंधित अनेक चमत्कारिक किससे अंकित है।
बाद के दिनों में स्थानीय विद्वान श्री कमल कुमार चौबे ने महथिन माई की महिमा कथा को लिपिबद्ध कर पुस्तक के स्वरुप में प्रकाशित किया है।शादी ब्याह के मौसम में नव विवाहिता जोड़े यहां ‘कंकन’ छुड़ाने आते है। इधर कुछ वर्षो से उक्त मंदिर शादी विवाह के महत्वपूर्ण स्थल के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुका है। यहां प्रति वर्ष सैकड़ों जोड़े आते रहे है तथा महथिन माई को साक्षी मानकर दाम्पत्य सूत्र में बंधते हैं।
कोई यहा मन्नत मांगने आता है तो कोई उसे पूरा होने पर चढ़ावे के लिए आता है| सती शिरोमणि महथिन माई मंदिर पर विश्वाश हैं की इनके पूजा करने से सुहागिन का सुहाग हमेशा बना रहेगा।
महथिन माई की कृपा भक्तों पर सदैव यूॅ ही बनी रहे।